Re: झलकारी बाई ( झाँसी की वीरांगना )
भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की बलिवेदी पर कुर्बान होने वाली और भारत की संपूर्ण आजादी के सपने को पूरा करने के लिए प्राणों का बलिदान करने वाली वीरांगना झलकारी बाई का नाम अब इतिहास के काले पन्नों से बाहर आकर पूर्ण चाँद के समान चारों ओर अपनी आभा बिखेरने लगा है। इसमें संदेह नही कि वर्चस्ववादी ताकतों द्वारा लिखे गए इतिहास में बार बार उनकी अपनी जाति व वर्ग के लोगों की विद्वता, बहादुरी और हिम्मत भरे कारनामों का ही बखान पढने को मिलता है। पर यह बात भी सत्य है कि किसी की प्रतिभा, क्षमता को कितना भी दबाया जाएं पर वक्त आने पर ये दमित प्रतिभाएं व अस्मिताएं ठीक उसी प्रकार अपनी चमक से संसार को चकाचौध कर विस्मित कर देती है जिस प्रकार किसी हीरे पर पडी वक्त की धूल हट जाने से हीरा जगमगाने लगता है। आज भारत से लेकर विश्व तक के इतिहास मे दबे कुचले गरीब वर्गो मे लाखों लोग ऐसे मिल जायेगे जिन्होंने विपरित व क्रूर परिस्थितियों मे भी मनुष्य की आजादी से लेकर देश की आजादी तक के लिए अपने सुख सुविधाओं व प्राणों की परवाह ना करते हुए समता, समानता और बंधुत्व की मानवीय लौ को जगाए रखा है। ऐसी ही महान विभूतियों में से एक नाम वीरांगना झलकारी बाई का भी है। इसमें कोई शक नही कि जातीय पूर्वाग्रहों के चलते भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की वीर सेनानी, दोस्ती व वचन निभाने के खातिर अपने प्राण उत्सर्ग करने वाली, साहस, वीरता, स्वाभिमान, औज, उत्साह, की अनोखी मिसाल वीरांगना झलकारी बाई की कीर्ति इतिहास के क्रूर पृष्ठो में अनेक वर्षों तक कैद रही, पर ऐसा कब तक संभव था आखिर एक ना एक दिन तो उनका नाम और वीरता देश के सामने प्रकट ही होनी थी।
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