मत्स्यावतार अपने चार पंखों को फड़-फड़ाते, ऊँची लहरों को चीरते समुद्र के अन्दर चला गया।
ब्रह्मा गहरी नींद सो रहे थे। अंधकार में प्रलय तांडव हो रहा था।
हयग्रीव नामक सोमकासुर समुद्र तल से ऊपर आया, फिर अचानक चमगीदड़ की तरह ब्रह्मा के सत्य लोक में उड़कर चला गया।
ब्रह्मा जब नींद के मारे पहले जंभाइयाँ ले रहे थे, तब उनके चारों मुखों से सफ़ेद, लाल, पीले और नीले रंगों में चमकनेवाले चार वेद बाहर निकले और नीचे गिर गये। हयग्रीव ने उन वेदों को उठा ले जाकर समुद्र के अन्दर छिपा दिया।
हयग्रीव देवताओं और विष्णु का भी ज़बर्दस्त दुश्मन था। वेदों के बिना ब्रह्मा सृष्टि की रचना नहीं कर सकते थे। हर एक कल्प में विष्णु अच्छाई को बढ़ावा देकर उसका विकास करना चाहते थे। उनके इस संकल्प को बिगाड़ देना ही हयग्रीव का लक्ष्य था।
प्रलय कालीन समुद्र पृथ्वी को डुबो रहा था। उस व़क्त सत्यव्रत को उस गहरे अंधेरे में दूरी पर नक्षत्र की तरह टिमटिमाने वाली रोशनी में एक नाव दिखाई दी। वही सप्त ऋषियों की कांति से भरी नाव थी।
सत्यव्रत ने औषधियों तथा बीजों को नाव के अंदर पहुँचा दियाऔर नारायण की स्तुति करते उसी नाव में यात्रा करने लगा। मत्स्यावतार की नाक पर एक लंबा सींग था। नक्षत्र की तरह चमकने वाले उस सींग से लिपट कर एक महा सर्प प्रलयकालीन आंधी को निगल रहा था। मत्स्यावतार अपने पंखों से लहरों को रोकते समुद्र को चीरते नाव को सुरक्षित ले जा रहा था। ध्रुव नक्षत्र को मार्गदर्शक बनाकर वह नाव फूल की तरह तिरते आगे बढ़ रही थी।
समुद्र के गर्भ में छिपाये गये वेदों का पहरा देते सोमकासुर समुद्र के भीतर टहल रहा था। चारों वेद चार शिशुओं के रूप में बदलकर किलकारियॉं कर रहे थे।
मत्स्यावतार वेदों की खोज करते हुए आगे चल पड़ा। मत्स्यावतार को देखते ही सोमकासुर घबरा गया; फिर भी हिम्मत बटोर कर वह अपना कांटोंवाला गदा हाथ में ले जूझ पड़ा।
उस समय तक विष्णु का अवतार मत्स्य के रूप में कमर तक हो गया था। उसमें चारों हाथ निकल आये थे। देखते-देखते मत्स्यावतार और सोमकासुर के बीच भीषण लड़ाई छिड़ गई।