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ABHAY
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Post Re: मुल्ला नसरुद्दीन की कहानी

मुल्ला नसरुद्दीन की दास्तान-6
इसके पहले आपने पढ़ा
(अपने शहर के सीमा पर मुल्ला ने दूसरे व्यापारियों के साथ खुले आकाश तले रात बिताई, अब उजाला फैलने लगा...)

सवेरे तड़के अजान देने वालों ने मीनारों से फिर अजान दी। फाटक खुल गए और कारवाँ धीरे-धीरे शहर में दाखिल होने लगा। ऊँटों के गले में बँधी घंटियाँ धीरे-धीरे बजने लगीं।

लेकिन फाटक में घुसते ही कारवाँ रुक गया। सामने की सड़क पहरेदारों से घिरी हुई थी। उनकी संख्या बहुत अधिक थी। कुछ पहरेदार ढंग और सलीके से वर्दी पहने हुए थे। लेकिन जिन्हें अमीर की नौकरी में अभी तक पैसा जुटाने का पूरा-पूरा मौक़ा नहीं मिला था, उनके बदन अधनंगे थे। पाँव नंगे थे। वे चीख़-चिल्ला रहे थे और उस लूट के लिए, जो उन्हें अभी-अभी मिलने वाली थी, एक-दूसरे को ठेल रहे थे, आपस में झगड़ रहे थे।

कुछ देर बाद एक कहवाख़ाने से कीच भरी आँखोंवाला एक मोटा-ताजा टैक्स अफसर निकला। उसकी रेशमी खलअत की आस्तीनों में तेल लगा था। पैरों में जूतियाँ थीं। उसके मोटे थुल-थुले चेहरे पर अय्याशी के चिन्ह साफ़-साफ़ दिखाई दे रहे थे।

उसने व्यापारियों पर ललचायी हुई नजऱ डाली। फिर कहने लगा- ‘स्वागत है व्यापारियों! अल्लाह तुम्हें अपने काम में सफलता दे। तुम्हें यह मालूम होना चाहिए कि अमीर का हुक्म है कि जो भी व्यापारी अपने माल का छोटे-से छोटा हिस्सा भी छिपाने की कोशिश करेगा, उसे बेंत मार-मारकर मार डाला जाएगा।’


परेशान व्यापारी अपनी रँगी हुई दाढ़ियों को खा़मोश सहलाते रहे। बेताबी से चहलक़दमी करते हुए पहरेदारों की ओर मुड़कर टैक्स अफसर ने अपनी मोटी उगलियाँ नचाईं।

इशारा पाते ही वे चीख़ते-चिल्लाते हुए ऊँटों पर टूट पड़े। उन्होंने उतावली में एक-दूसरे पर गिरते-पड़ते अपनी तलवारों से रस्से काट डाले और सामान की गाँठें खोल दीं।

रेशम और मखमल के थान, काली मिर्च, कपूर और गुलाब की क़ीमती इत्र की शीशियाँ, कहवा और तिब्बती दवाओं के डिब्बे सड़क पर बिखर गए।

भय तथा परेशानी ने व्यापारियों की जुबान पर जैसे ताले लगा दिए। जाँच दो मिनट में पूरी हो गईं। सिपाही अपने अफसर के पीछे क़तार बाँधकर खड़े हो गए। उनके कोटों की जेबें लूट के माल में फटी जा रही थीं।


इसके बाद शहर में आने और माल टैक्स की वसूली आरंभ हो गईं। मुल्ला नसरुद्दीन के पास व्यापार के लिए कोई सामान नहीं था। उसे केवल शहर में घुसने का टैक्स देना था।

अफसर ने पूछा, ‘तुम कहाँ से आ रहे हो? और तुम्हारे आने की वजह क्या है?’

मुहर्रिर ने सींग से भरी स्याही में बाँस की क़लम डुबाई और मोटे रजिस्टर में मुल्ला नसरुद्दीन का बयान लिखने के लिए तैयार हो गया।

‘हुजूर आला, मैं ईरान से आ रहा हूँ। यहाँ बुखारा में मेरे कुछ रिश्तेदार रहते हैं।’

‘अच्छा।’ अफसर ने कहा, तो तुम अपने रिश्तेदारों से मिलने आए हो? इस हालत में तुम्हें मिलनेवालों का टैक्स अदा करना होगा।’
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