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Old 31-03-2013, 12:35 AM   #18
jai_bhardwaj
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Originally Posted by rajnish manga View Post
* संस्कृत की एक सूक्ति पर नज़र डालते है. क्या आपको यह पढ़ने के बाद कुछ और कहावते नहीं याद आ रहीं?

दूरतः पर्वताः रम्याः
(पर्वत दूर से बड़े रमणीक दिखाई देते हैं)
^^^
दूर के ढोल सुहावने होते हैं .
ढोल के भीतर पोल
हर चमकती हुयी वस्तु हीरा नहीं होती है .
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

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