Re: आज का शायर
अज़ीम उर्दू शायर अहमद फ़राज़ (12 जनवरी)
अहमद फ़राज़ की शायरी की विशेषताओं की बात करें तो जहां एक ओर उनकी रोमानी शायरी लोगों को दीवाना बना देती थी तो दूसरी ओर उनकी बेबाक और प्रगतिशील व क्रांतिकारी अंदाज़ उनके देश के सैनिक तानाशाहों को बैचेन रखता था. यही वजह है कि पाकिस्तान में सरकारी तंत्र में हर हाथ उनके लिये खंजर बन गया था:
शहर वालों की मुहब्बत का मैं कायल हूँ मगर
मैंने जिस हाथ को चूमा वही खंजर निकला
मेरा कलाम तो अमानत है मेरे लोगों की
मेरा कलाम तो अदालत मेरे ज़मीर की है
यही कहा था मेरी आँख देख सकती है
तो मुझ पे टूट पड़ा सारा शहर नाबीना
(नाबीना = अंधा)
उनकी एक मशहूर ग़ज़ल के चंद अश'आर:
रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
कुछ तो मेरे पिन्दार-ए-मोहब्बत का भरम रख
तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ
पहले से मरासिम न सही, फिर भी कभी तो
रस्मों-रहे दुनिया ही निभाने के लिए आ
किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से ख़फ़ा है, तो ज़माने के लिए आ
शब्दार्थ: पिन्दार-ए-मोहब्बत = प्रेम का गर्व / मरासिम = प्रेम व्यवहार
रस्मों-रहे = सांसारिक शिष्टाचार
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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