Re: Muhobbat
डॉ. सर्राफ ने प्रभा खेतान से कभी प्रेम किया ही नहीं, उनके लिए यह क्षणों का आकर्षण था, जिसे उन्होंने स्वयं स्वीकारा भी. लेकिन प्रभा खेतान के लिए उनका प्रेम उनका पूरा बजूद था, उनका अस्तित्व था जिसे वे पीड़ा सहकर भी अंत तक कायम रखती हैं। उनका कथन इस बात का प्रमाण है-
‘‘वेदना की कड़ी धूप में
खड़ी हो जाती हूँ क्यों
बार-बार ?
प्यार का सावन लहलहा जाता है मुझे
किसने सिखाया मुझे यह खेल
जलो ! जलते रहो !
लेकिन प्रेम करो और जीवित रहो’’
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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