Re: गधा माँगे इन्साफ़
विष्णु ने सकपकाकर कहा- ’यह.. यह तिरुपति की कमाई नहीं है, देवी। तुम मुझे जेबखर्च के लिए रोज़ाना जो करोड़ों स्वर्ण मुद्राएं देती हो, उसी को लुटा रहा हूँ।’
लक्ष्मी ने क्रोधपूर्वक कहा- ’जेबखर्च के लिए स्वर्ण मुद्राएं इसलिए नहीं देती कि तुम दारू पीकर अय्याशी करो और अप्सराओं पर आँख बन्द करके लुटाओ। मेरी तो छाती फटी जा रही है। तुमसे ये नहीं होता कि मेरी बहन सरस्वती के लिए कोई योग्य देव वर ढूँढकर लाओ। बेचारी कब से ब्रह्मा से नाराज़ होकर अलग रह रही है। तुम्हें ज़रा भी चिन्ता नहीं अपनी साली की। बेचारी कब तक सिंगल रहेगी?’
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