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Old 15-07-2013, 12:36 PM   #26
VARSHNEY.009
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Default Re: विज्ञान दर्शन

तारों का जीवन और मृत्यु

सितारे का जिवनचक्र
सामान्यतः सितारे का जीवनचक्र दो तरह का होता है और लगभग सभी तारे इन दो जीवन चक्र मे से किसी एक का पालन करते है। इन दो जीवन चक्र मे चयन का पैमाना उस तारे का द्रव्यमान होता है। कोई भी तारा जिसका द्रव्यमान तीन सौर द्रव्यमान(१ सौर द्रव्यमान: सूर्य का द्रव्यमान) के तुल्य हो वह मुख्य अनुक्रम (निले तारे से लाल तारे) मे परिवर्तित होते हुये अपनी जिंदगी बिताता है। लगभग ९०% तारे इस प्रकार के होते है। यदि कोई तारा अपने जन्म के समयतीन सौर द्रव्यमान से ज्यादा द्रव्यमान का होता है तब वह मुख्य जीवन अनुक्रम मे काफी कम समय के लिये रहता है, उसका जीवन बहुत कम होता है। जितना ज्यादा द्रव्यमान उतनी ही छोटी जिंदगी और उससे ज्यादा विस्फोटक मृत्यु जो एक न्यूट्रॉन तारे या श्याम वीवर को जन्म देती है।
तारों का अपने जीवन काल मे उर्जा उत्पादन
अपनी जिंदगी के अधिकतर भाग मे मुख्य अनुक्रम के तारे हाइड्रोजन संलयन की प्रक्रिया के द्वारा उर्जा उत्पन्न करते है। इस प्रक्रिया मे दो हाइड्रोजन के परमाणु हिलीयम का एक परमाणु निर्मित करते है। उर्जा का निर्माण का कारण है कि हिलीयम के परमाणु का द्रव्यमान दो हाइड्रोजन के परमाणु के कुलद्रव्यमान से थोड़ा साकम होता है। दोनो द्रव्यमानो मे यह अंतर उर्जा मे परिवर्तित होजाता है। यह उर्जा आईन्सटाईन के प्रसिद्ध समीकरण E=mc2 जहाँE= उर्जा, m=द्रव्यमान और c=प्रकाश गति। हमारा सूर्य इसी प्रक्रिया से उर्जा उत्पन्न कर रहा है। हाइड्रोजन बम भी इसी प्रक्रिया का प्रयोग करते है।
नीचे दी गयी तस्वीर मे दो प्रोटान(हाइड्रोजन का केण्द्रक) मिलकर एक ड्युटेरीयम (हाइड्रोजन का समस्थानिक) का निर्माण कर रहे है। इस प्रक्रिया मे एक पाजीट्रान और एक न्युट्रीनो भी मुक्त होते है। इस ड्युटेरीयम नाभीक पर जब एक प्रोटान से बमबारी की जाती है हिलीयम-३ का नाभिक निर्मित होता है साथ मे गामा किरण के रूप मे एक फोटान मुक्त होता है। इसके पश्चात एक हिलीयम ३ के नाभिक पर जब दूसरे हिलीयम-३ का नाभिक टकराता है स्थाई और सामान्य हिलीयम का निर्माण होता है और दो प्रोटान मुक्त होते है। इस सारी प्रक्रिया मे निर्मित पाजीट्रान किसी इलेक्ट्रान से टकरा कर उर्जा मे बदल जाता है और गामा किरण (फोटान) के रूप मे मुक्त होता है। हमारे सूर्य के केन्द्र से उर्जा इन्ही गामा किरणों के रूप मे वितरीत होती है।


तारो मे नाभिकिय संलयन की प्रक्रिया
हमारा सूर्य अभी इसी अवस्था मे है, नीचे दिये गये आंकड़े सूर्य से संबधित ह॥ सूर्य बाकी अन्य तारों के जैसा ही होने की वजह से ये सभी तारों के प्रतिनिधि आंकड़े माने जा सकतेहै और हम तारों के कार्य पद्धति के बारे मे समझ सकते है। हर सेकंड सूर्य ५००० लाख टनहाइड्रोजन को हिलीयम मे बदलता है। इस प्रक्रिया मे हर सेकंड ५० लाखटनद्रव्यमान उर्जा मे तब्दील होता है। यह उर्जा लगभग १०२७ वाट की उर्जा के बराबर है। पृथ्वी पर हम इस उर्जा का लगभग २/,०००,०००,००० (२ अरबवां) हिस्सा प्राप्त करते है या x १०१८वाट उर्जा प्राप्त करते है। यह उर्जा १०० सामान्य बल्बो को ५० लाख वर्ष तक जलाये रखने के लिये काफी है। यह मानव इतिहास से भी ज्यादा समय है।
मुख्य अनुक्रम के तारे की मृत्यु
लगभग १० अरब वर्ष मे एक मुख्य अनुक्रम का तारा अपनी १०% हाइड्रोजनको हिलीयम मे परिवर्तित कर देता है। ऐसा लगता है कि तारा अपनी हाइड्रोजन संलयन की प्रक्रिया को अगले ९० अरब वर्ष तक जारी रख सकता है लेकिन ये सत्य नही है। ध्यान दें कि तारे के केन्द्र मे अत्यधिक दबाव होता है और इस दबाव से ही संलयन प्रक्रिया प्रारंभ होती है लेकिन एक निश्चित मात्रा मे। बड़ा हुआ दबाव मतलब बड़ा हुआ तापमान। केन्द्र के बाहर मे भी हाइड्रोजन होती है लेकिन इतना ज्यादा दबाव नही होता कि संलयन प्रारंभ हो सके।
अब हिलीयम से बना केन्द्र सिकुड़ना प्रारंभ करता है और बाहरी तह फैलते हुये ठंडी होना शुरू होती है, ये तह लाल रंग मे चमकती है। तारे का आकार बड जाता है। इस अवस्था मे वह अपने सारे ग्रहो को निगल भी सकता है। अब तारा लाल दानव(red gaint)कहलाता है। केन्द्र मे अब हिलीयम संलयन प्रारंभ होता है क्योंकि केन्द्रक संकुचित हो रहा है, जिससे दबाव बढ़ेगा और उससे तापमान भी। यह तापमान इतना ज्यादा हो जाता है कि हिलीयम संलयन प्रक्रिया से भारी तत्व बनना प्रारंभ होते है। इस समय हिलीयम कोर की सतह पर हाइड्रोजन संलयन भी होता है क्योंकि हिलीयम कोर की सतह परहाइड्रोजन संलयन के लिये तापमान बन जाता है। लेकिन इस सतह के बाहर तापमान कम होने से संलयन नही हो पाता है। इस स्थिती मे तारा अगले १००,०००,००० वर्ष रह सकता है।


मीरा (Meera Red Gaint) लाल दानव
इतना समय बीत जाने के बाद लाल दानव का ज्यादातर पदार्थ कार्बन से बना होता है। यह कार्बन हिलीयम संलयन प्रक्रिया मे से बना है। अगला संलयन कार्बन से लोहे मे बदलनेका होगा। लेकिन तारे के केन्द्र मे इतना दबाव नही बन पाता कि यह प्रक्रिया प्रारंभ हो सके। अब बाहर की ओर दिशा मे दबाव नही है, जिससे केन्द्र सिकुड जाता है और केन्द्र से बाहर की ओर झटके से तंरंगे (Shock wave)भेजना शुरू कर देता है। इसमे तारे की बाहरी तहे अंतरिक्ष मे फैल जाती है, इससे ग्रहीय निहारीका का निर्माण होता है। बचा हुआ केन्द्र सफेद बौना(वामन) तारा(white dwarf) कहलाता है। यह केन्द्र शुध्दकार्बन(कोयला) से बना होता हैऔर इसमे इतनी उर्जा शेष होती है कि यह चमकीलेसफेद रंग मे चमकता है। इसका द्रव्यमान भी कम होता है क्योंकि इसकी बाहरी तहे अंतरिक्ष मे फेंक दी गयी है। इस स्थिति मे यदि उस तारे के ग्रह भी दूर धकेल दिये जाते है, यदि वे लाल दानव के रूप मे तारे द्वारा निगले जाने से बच गये हो तो।

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