अमित भाई जी,
कुछ लिखने का प्रयास करता हूँ और अग्रिम जमानत की अर्जी भी दाखिल कर देता हूँ कि यदि कुछ भी विषयपरक न हो तो माफ़ करें।
पहले प्रश्न के जवाब में…
पुराणों के अनुसार अति प्राचीन काल में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड जल-प्लावित था। उसी जल में कमल-नाल से आदि ब्रह्मा का प्रादुर्भाव हुआ। कमल-नाल से उत्पन्न होने के कारण आदि ब्रह्मा को नारायण भी कहा गया है।
किन्तु इनसे पूर्व भी पंच महाभूतों अर्थात पाँच तत्वों {क्षिति,जल,पावक,गगन समीरा} के रूप में भगवान् रुद्र अर्थात स्वयंभू विधमान थे। उनकी विधमानता का भान होते ही ब्रह्मा को महान् आश्र्चर्य हुआ। उन्होंने भगवान् रुद्र को आपना अग्रज तथा ज्येष्ठ पुरुष स्वीकार किया। तत्पश्र्चात् उन्होंने विनती भाव से निवेदन किया कि "भगवान् आप में ही आदि, मध्य तथा अन्त निहित हैं। आप ही सृष्टि की रचना में सक्षम हैं अतएव सृष्टि रचें। ब्रह्मा के इस अनुरोध को भगवान् रुद्र ने तथास्तु कह कर जल में प्रवेश किया। इस प्रकार तमाम प्राणियों और देवताओं का उत्पत्ति हुई।
प्रश्न दो अभी के लिए अनुत्तरित है।
प्रश्न तीन के जवाब में…
प्राणियों की उत्पत्ति के बाद व्याप्त अस्थिरता को स्थिर करने के लिए इन रचनाओं की रचना की गयी। ताकी समाज में सामंजस्य स्थापित हो सके।
प्रश्न चार के जवाब में…
इस का उत्तर आपने स्वयं प्रविष्ट किया है और हम उसे सही मानते हुये आप से सहमत हैं।
प्रश्न पाँच के जवाब में…
इस धर्म में कुछ सीमायें और वर्जनाएँ निर्धारित हैं जिनका समय समय पर समर्थन और खंडन होता रहता है। जहाँ तक हमारा मनना है कि आजके भौतिकवाद में पूर्णतः उपयुक्त नहीं है।
हार्दिक धन्यवाद।
Quote:
Originally Posted by amit_tiwari
सूत्र का शीर्षक एक काफी कही सुनी जाने वाली कहावत है किन्तु सूत्र का उद्देश्य धर्म को चुनौती देना या देवी गीत लिखना नहीं है |
मेरे अपने अध्ययन में मैंने हिन्दू धर्म को धर्म से बढ़कर ही पाया है |
अब इसे सनातन धर्म कहा जाता था आदि आदि इत्यादि सभी को पता है | उस सबसे अलग कुछ बातें हैं जो मन जानना चाहता है, दिमाग समझना चाहता है और अबूझ को पाने की लालसा तो होती ही है |
हिन्दू धर्म की कुछ ऐसी बातें हैं जो बेहद अछूती हैं जैसे ;
- हमारे धर्म में इतने सारे देवता हैं, इनका प्रादुर्भाव कहाँ से हुआ ?
- इतने वेद पुराण हैं, इनका धर्म के अस्तित्व, जन्म, विकास और हमारे जीवन से क्या सम्बन्ध है !
- रामायण, महाभारत आखिर क्या हैं और क्यूँ हैं ?
- द्वैतवाद, अद्वैतवाद, अघोरपंथ, नाथपंथ, सखी सम्प्रदाय, शैव, वैष्णव या चार्वाक इनका सबका अर्थ क्या है? इनका अस्तित्व है या नहीं और यदि है तो एकसाथ कैसे बना हुआ है ?
- क्या हिन्दू धर्म आज के भौतिक युग में प्रासंगिक है ? और किस सीमा तक है ?
ऐसे अनगिनत प्रश्न हैं जिन पर कुछ विचार मेरे पास हैं, बाकी सबसे सुनने की अभिलाषा है अतः यथासंभव योगदान देते चलें |
नोट : देवीगीत, आरती, भजन, किसी बाबा की कथा या कही और का लेख ना छापें |
यहाँ मैं विचारों का समागम, संगम देखना और करना चाहता हूँ जिनका लेखक का अपना होना अनिवार्य है अतः भावनात्मक उत्तर प्रतिउत्तर ना करें |
-अमित
|