मंत्र ज्ञान से अनभिज्ञ व्यक्ति जब मंदिर का पुजारी बना
जीवन दर्शन.. दक्षिण भारत के एक प्रांत में एक विशाल मंदिर था। उस मंदिर के प्रबंधक प्रधान पुजारी की मृत्यु के बाद मंदिर के महंत ने दूसरे पुजारी को नियुक्त करने के लिए घोषणा कराई कि जो कल सुबह प्रथम पहर मंदिर में आकर पूजा विषयक ज्ञान में सही सिद्ध होगा, उसे पुजारी रखा जाएगा। यह घोषणा सुन अनेक ब्राrाण सुबह मंदिर के लिए चल पड़े।
मंदिर पहाड़ी पर था और पहुंचने का मार्ग कांटों व पत्थरों से भरा हुआ था। मार्ग की इन जटिलताओं से किसी प्रकार बचकर ये सभी ब्राrाण मंदिर पहुंच गए। महंत ने सभी से कुछ प्रश्न और मंत्र पूछे। जब परीक्षा समाप्त होने को थी, तभी एक युवा ब्राrाण वहां आया।
वह पसीने से लथपथ था और उसके कपड़े भी फट गए थे। महंत ने देरी का कारण पूछा तो वह बोला – घर से तो बहुत जल्दी चला था, किंतु मंदिर के मार्ग में बहुत कांटे व पत्थर देख उन्हें हटाने लगा, ताकि यात्रियों को कष्ट न हो। इसी में देर हो गई।
महंत ने उससे पूजा विधि पूछी, जो उसने बता दी। फिर मंत्र पूछे तो वह बोला – भगवान से नहाने-खाने को कहने के लिए मंत्र भी होते हैं, यह मैं नहीं जानता। महंत ने कहा – पुजारी तो तुम बन गए। मंत्र मैं सिखा दूंगा। यह सुनकर अन्य ब्राrाण नाराज होने लगे।
तब महंत ने कहा – अपने स्वार्थ की बात तो पशु भी जानते हैं, किंतु सच्चा मनुष्य वह है, जो दूसरों के दुख के लिए अपना सुख छोड़ दे। कथा का सार यह है कि ज्ञान और अनुभव वैयक्तिक होते हैं, जबकि मनुष्यता सदैव परोन्मुखी होती है और इसीलिए वह समाज कल्याण में निरंतर लगी रहती है।