Re: मुहावरों की कहानी
कुत्तों पर मुहावरे या मुहावरों में कुत्ते
कई फिल्मी मुहावरे अब सामाजिक जीवन में घुल-मिलकर इंसानी मुहावरों में तब्दील हो गए हैं। इनमें एक प्रसिद्ध मुहावरा है आचार्य धर्मेद्र उच्चारित- कुत्ते मैं तेरा खून पी जाऊंगा। यह अब कई प्रसिद्ध, लेकिन बासी मुहावरों में शामिल हो चुका है। जैसे- भारत एक कृषि प्रधान देश है या साहित्य समाज का दर्पण है आदि-आदि। लेकिन कुत्ते का खून पीने के संकल्प में एक साहस है। एक उद्बोधन है। इसमें गर्जन-तर्जन है। भाषाशास्त्र के अनुसार, यह दफा 302 की धारा है। हम सिर्फ पशु हत्या के इरादे से ही - तेरा खून पी जाऊंगा कहते हैं। असल में पीते नहीं। हम मुरगा और बकरा तो खाते हैं, मगर उनका खून नहीं पीते। हम सभ्य हैं। इधर कुछ ऐसा हुआ है कि आदमी और कुत्ता चर्चा में हैं। एक नया शोध यह है कि फुटपाथ कुत्तों के लिए होता है आदमियों के लिए नहीं। उन गरीब आदमियों के लिए भी नहीं, जो वाकई कुत्तों की जिंदगी जी रहे हैं। कुत्ता स्वयं एक सामाजिक जीव है। वह अभिव्यक्ति का माध्यम भी है। लोग अक्सर गालीनुसार कहते हैं कि- बड़ी कुत्ती चीज हो यार।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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