20-12-2012, 09:16 PM
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अति विशिष्ट कवि
Join Date: Jun 2011
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Re: लड़की
Quote:
Originally Posted by jai_bhardwaj
डाक्टर साहब की इस अद्भुद रचना के सम्मान में कुछ पंक्तियाँ उद्धृत करता हूँ ..............
कभी मिशरी सी लगती है, कभी कडवी सी लगती है
कभी सूखी नदी लगती, या बदली सी बरसती है
कवि की कल्पना सी है, सृष्टि की सृष्टि-रचना है
मेरी आँखों में रहती है, मुझे आँखों में रखती है।
हँसाने पर नहीं हँसती, मगर मुस्कान रहती है
रहे गागर में सागर सी, कदाचित ही छलकती है
शांत तो धूलि पैरों की, कुपित तो है विषम आँधी
कभी लड़ जाए ईश्वर से, कभी अपने से डरती है।
असीम स्नेह देती है, मृदुल ममता से भरती है
सहमती है, सिसकती है, सरसती है, संभलती है
ये माता है, ये बहना है, ये बेटी, पत्नी, साथी 'जय',
कभी चुपचाप रहती है, कभी ये खुल के कहती है।
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श्री jai_bhardwaj जी ;आप तो बहुत अच्छा लिखते हैं फिर आप नियमित क्यों नहीं लिखते . बहरहाल आपका बहुत शुक्रिया .
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