Re: लघुकथाएँ
कुत्ता [लघुकथा] - आशीष रस्तौगी
शाम का समय था। ठेकेदार साहब अपने घर पर बैठकर चाय का मजा ले रहे थे। तभी गेट पर घंटी बजी। दुबला-पतला एक व्यक्ति गेट पर खड़ा था। गेट खुला हुआ ही था।
“साहब, मुझे गुप्ताजी ने आपके पास भेजा है।” पूछने पर उसने बताया।
ठेकेदार ने उसे अन्दर बुला लिया। अन्दर पहुँचकर वह ठेकेदार से कुछ दूरी बनाते हुए जमीन पर बैठ गया।
“घरेलू कामकाज के लिए हम लोगों को एक नौकर की तलाश है। घर में सिर्फ तीन प्राणी हैं—मैं, मेरी पत्नी और विदेशी नस्ल का हमारा रूमी।”
जमीन पर बैठे आदमी की समझ में वह तीसरा प्राणी एकाएक ही नहीं आया कि कौन है। वह ठेकेदार से उसके बारे में पूछने ही वाला था कि सुती-सी कमर वाला एक कुत्ता वहाँ आया और उसे घूरता हुआ ठेकेदार के समीप सोफे पर बैठ गया।
“साहब, मेरे को घर का सारा काम आता है।” सारी बात समझकर व्यक्ति बोला।
“नाम क्या है तुम्हारा?” ठेकेदार ने उससे पूछा।
“जी, गरीबू।” वह बोला।
“तुम्हारे परिवार में कितने लोग हैं?”
“पाँच लोग हैं साहब—मैं, मेरी बीवी और तीन बच्चे…।”
ये बातें चल ही रही थीं कि गेट की घंटी पुन: बजी। देखा—ठेकेदार का एक अन्य मित्र सोहन सिंह घर में घुस रहा था। वह आया और उसी सोफे पर बैठकर कुत्ते से खेलने लगा।
“घर और बाजार का सारा काम करना होगा।” ठेकेदार गरीबू से बोला,“पगार तीन हजार रुपए महीना यानी कि सौ रुपए रोज। जिस दिन भी छुट्टी करोगे—सौ रुपया काट लिया जाएगा।”
“जी।” गरीबू ने गरदन हिलाई।
“आने-जाने वालों का भी पूरा ध्यान रखना होगा—मंजूर है?” ठेकेदार ने पकाया।
“जी।” उसने पुन: गरदन हिलाई।
“यार ऐसा ही एक पीस मैं भी घर में रखना चाहता हूँ।” बातचीत के बीच में ही सोहन सिंह ठेकेदार से बोला,“माहवार कितना खर्चा आ जाता होगा?”
“ठीक-ठाक चलता रहे तो यही करीब दस हजार…।” ठेकेदार बोला।
गरीबू की हसरत भरी नजरें ठेकेदार का जवाब सुनते ही रूमी पर जा टिकीं।
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !!
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !!
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