Re: गुरुदत्त की फिल्म प्यासा
भाईयों से धक्के खाकर विजय ट्राम में बैठता है. विजय की झूठी मौत को आज एक साल पूरा हो गया. कलकत्ते के ही किसी बड़े हाल में बड़ी शान के साथ विजय की मौत की पहली बरसी मनाई जाने वाली है. ट्राम में बैठा एक शख़्स अपने दोस्*त कह रहा है, ‘विजय बहुत बड़े शायर तो थे ही, साथ में मेरे दोस्*त भी थे. अक़्सर मेरे पास पैसों की मदद मांगने आया करते थे. मैं न होता तो वो 6 महीने पहले ही आत्*महत्*या करके मर गए होते.’ विजय बड़ी खामोशी से यह सब सुन रहा है.
लोगों से खचाखच भरा एक बहुत बड़ा सा हॉल. स्टेज पर मिस्*टर घोष, उनकी पत्नी मीना और अन्*य लोग बैठे हैं. दर्शकों में अब्*दुल सत्तार और गुलाबो बैठे हैं. विजय के दोनों भाई और दोस्त भी मौजूद हैं. विजय हॉल में सबसे पीछे है. स्टेज पर मिस्*टर घोष विजय की शान में भाषण दे रहे हैं, ‘साहिबान, आप लोग तो जानते हैं कि शायर-ए-आज़म विजय मरहूम की बरसी मनाने हम लोग यहां जमा हुए हैं. पिछले साल इसी दिन वह मनहूस घड़ी आई थी, जिसने दुनिया से इतना बड़ा शायर छीन लिया. अगर हो सकता तो मैं अपनी सारी दौलत लुटा कर भी, ख़ुद बिक कर भी, विजय को बचा लेता लेकिन ऐसा न हो सका. क्यों? आप लोगों की वज़ह से! कहने को तो दुनिया कहती है विजय ने अपनी जान दे दी, लेकिन दरअसल आप लोगों ने उनकी जान ले ली. काश! आज विजय मरहूम ज़िंदा होते तो वह देखते कि जिस समाज ने उन्हें भूखा मारा, आज वही समाज उन्हें हीरे और जवाहरात में तौलने के लिए तैयार है. जिस दुनिया में वह गुमनाम रहे, आज वही दुनिया उन्हें अपने दिलों के तख्*़त पर बैठाना चाहती है. उन्हें शोहरत का ताज पहनाना चाहती है. उन्हें ग़रीबी और मुफ़लिसी की गलियों से निकाल कर महलों में राजा बनाना चाहती है’.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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