Re: मेरी रचनाये-4 दीपक खत्री 'रौनक'
खो गए हम तेरे ख्याल-ए-इश्क मे
बह रही है जीस्त मेरी अश्क अश्क मे
आरजू बदल रही फिजा के साथ साथ
निकल रहा है दम यहाँ क़िस्त क़िस्त मे
बदल रही है श्कल दिन-ब-दिन जिन्दगी
दम-बा-दम हो गया गुमनाम अश्क मे
मिटा रहा है दाग इधर जीस्त से आदम
हो रहा है जुर्म नुमू हर एक अक्स मे
उड़ रहा धुआं यहाँ ख्याल-ए-खास पर
भरा हुआ है गम बहुत हर एक अश्क मे
जल रही है चिता सी 'रौनक' की जिंदगी
हो रहा फ़ना यहाँ मै क़िस्त क़िस्त मे
दीपक खत्री 'रौनक'
|