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Old 30-07-2014, 03:26 PM   #9
rafik
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Default Re: कन्या का जन्म एक त्रासदी नहीं

क़ानून को हाथ में लिए खड़ी है ,
आँखों पर काली पट्टी चडी है
हर पुरुष उसके आगे नतमस्तक है
वो गंगा है , यमुना है , सरस्वती है
सब का पाप धोने के लिए बहती है
हर पुरुष उनके आगे नतमस्तक है
वो वैष्णो देवी मै है , वो काली है , अम्बे है,
वो शेरो वाली है , वो माँ संतोषी है
हर पुरुष उनके आगे नतमस्तक है
वो ही तो है , जिस के आँचल के नीर से पल कर"जग"बड़ा हुआ है
आज हर पुरुष अपने पैरों पर खड़ा हुआ है
हर पुरुष उनके आगेभीनतमस्तक है |
फिर जब तुम स्त्री की इतनी इज्जत करते हो
उसे मंदिर में पूजते हो , उसके पानी में पाप धोते हो
उसके आँचल में पल कर बड़े होते हो ...|
फिर क्यूँ ... सरे आम उसी स्त्री को नोचतें हो ?
क्यूँ उसके जिस्म की इतनी भूख है तुम्हे ?
क्यूँ जर्रा जर्रा कर देना चाहते हो "स्त्रीत्व" को तुम ?
क्यूँ "हर दिन" , "हर अखबार" , का "हर पन्ना"
स्त्री के आसूं से सजा होता है ?
क्यूँ स्त्री के लिए मंदिर के बाहर होना
इतनी बड़ी "सजा" होता है ?
आखिर कब तक चलेगी ये दानवता
आखिर कब तक शर्मसार होती रहेगी मानवता ???
जवाब मत दीजिये , वरन अपने अंदर जवाब खोजिये
__________________


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