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Originally Posted by rajnish manga
कहानी भले ही काल्पनिक हो, मगर सोचने पर मजबूर करती है. इस प्रकार की घटनाएं असल जीवन में भी घटित हो रही हैं. यह सब समाज के मुंह पर झन्नाटेदार थप्पड़ नहीं तो क्या है. कहाँ है समाज की आत्मा? अगर है तो बोलती क्यों नहीं? हालात बदल क्यों नहीं देती?
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स्वार्थ ने इन्सान को शैतान बना दिया है .. कोई किसी के झमेले में नही पड़ना चाहता. मंत्री का बेटा था तो क्या हुआ, उसे भी एइसे ही गाड़ी से कुचल देना चहिये था तब पता चलता उस मंत्री को, की बेटे की मौत का ग़म क्या होता है . लोग बड़े पद पर क्या बैठ जाते हैं खुद को भगवan समझाने लगते हैं ..कहानी भले ही काल्पनिक है किन्तु आज के समाज की सच्चाई झलक रही है रजनीश जी .