Re: नपुंसकामृतार्णव
ध्वजभंग के महा उपद्रव
इन्द्रिय का सूज जाना, उसमें पीड़ा होना, फोड़े-फुंसियां हो जाना अथवा पक जाना, शिश्न का मांस बढ़ जाना, तत्काल घाव हो जाना और उसमें से काले, लाल अथवा धोवन जैसे रंग का स्राव होना, इन्द्रिय में गोल चूड़ी सी बन जाना, जड़ का आटे की तरह कठोर हो जाना तथा इस रोग से पीड़ित होने के कारण ज्वर (बुखार), मूर्च्छा (बेहोशी), तृषा (अधिक प्यास), वमन (उल्टियां) आदि विकार हों ! इन्द्रिय से लाल-काला स्राव हो, अग्नि से जलने का सा पीड़ादायक दर्द हो; वृषण, मुंड तथा सीवन (मुंड को शेष हिस्से से जोड़ने वाली खाल) में जलन के साथ दर्द हो, कभी इनमें से गाढ़ा पीला स्राव हो, कभी इन्हीं स्थानों में मंद सूजन और थोड़ा स्राव हो, कभी देर में तथा कभी जल्दी पक जाए और मुंड गल कर गिर जाए अथवा यही स्थिति मुंड और वृषण दोनों की हो, यह ध्वजभंग के महा उपद्रव हैं !
__________________
दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
|