19-05-2016, 08:30 AM
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Super Moderator
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Re: khawaabon ki basti
[बचपन की बात और थी जब लड़खड़ा जाया करती थी जुबां,
पर अब कहाँ किसी से कुछ कहता हूँ, दीवारों सा चुप रहता हूँ,
है मेरी अपनी ख्वाबों की बस्ती, बस उन पर में चलता रहता हूँ!!
बचपन की बात और थी जब हर छोटी बात पे झरने बहते थे,
पर अब कहाँ किसी की बातों को दिल पे लेता हूँ, झरनों को बस अंदर ही बहने देता हूँ,
है मेरी अपनी ख्वाबों की बस्ती, बस उन पर मैं चलता रहता हूँ!!]
बहुत दिनों बाद आपका आना हुआ. अच्छा लगा. आपकी कविता इतनी बढ़िया है कि दोबारा सरलता से पढ़ने के लिये इसे देवनागरी में लिखना पड़ा. अन्य पाठकों को भी मजा आयेगा. आपके लेखन में जो गहराई है, वह कम ही देखने में आती है. इसी प्रकार लिखते रहें और शेयर करते रहें. हार्दिक धन्यवाद, राहुल जी.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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