Re: कुतुबनुमा
भरोसा न तोड़ दे होड़ की हाबड़तोड़
इन दिनों जिस तरह से देश का इलेक्ट्रोनिक मीडिया हर घटनाक्रम में मीनमेख निकालने की होड़ में जुटा है, वह पत्रकारिता जगत के लिए स्वास्थ्यवर्धक तो किसी भी कोण से नहीं माना जा सकता, ऊपर से हर खबर में अव्वल रहने की होड़ ने ऐसी हाबड़तोड़ मचा रखी है कि न तो तथ्यों पर गौर किया जा रहा है और न ही यह सोचा जा रहा है कि दर्शकों पर इस तरह के ऊटपटांग तथ्यों का असर क्या पड़ने वाला है। हाल के दो घटनाक्रमों ने इलेक्ट्रोनिक मीडिया में ‘सबसे तेज’ की होड़ ने ऐसी पोल खोली कि टेलीवजन का आम दर्शक यही सोचता रहा कि किसे सही माना जाए और किसे नहीं। पहला वाकया दिल्ली की तिहाड़ जेल में अफजल की फांसी को लेकर सामने आया। शनिवार नौ फरवरी को सुबह करीब सात बजकर पचास मिनट पर अचानक एक समाचार चैनल ने अपना निर्धारित कार्यक्रम रोक कर 'ब्रेकिंग न्यूज’ दी कि अफजल गुरू को तिहाड़ में फांसी दे दी गई है। बस, फिर क्या था, पूरा इलेक्ट्रोनिक मीडिया इस खबर पर टूट पड़ा और दावे शुरू हो गए कि ‘सबसे पहले हमने’ इस खबर को अपने दर्शकों तक पहुंचाया है। उनके दावों से तो ऐसा लग रहा था मानो हर चैनल का अपना रिपोर्टर उस जगह खड़ा है, जहां अफजल को फांसी दी गई है। हां, इसमें कोई दो राय नहीं कि जो खबर दी जा रही थी, उसकी गंभीरता पर तो चैनल संजीदा थे, लेकिन जिस हड़बड़ी में उसे प्रस्तुत किया जा रहा था, उससे लगा कि कहीं कोई चूक न हो जाए और वो हो गई। एक चैनल ने ‘तेजी’ के चक्कर में बता दिया कि फांसी सुबह करीब साढ़े सात बजे दी गई, जबकि केन्द्रीय गृहमंत्री ने दस बजे अपनी आधिकारिक घोषणा में फांसी का समय सुबह आठ बजे बताया। इस तरह तथ्य से भटकना या भटकाना कोई अच्छा संकेत नहीं है। दूसरी खबर इलाहाबाद में कुंभ यात्रियों की भगदड़ से जुड़ी है। रविवार रात अचानक एक चैनल ने ‘सबसे पहले’ के चक्कर में ब्रेकिंग न्यूज दी कि कुंभ मेले में भगदड़ में कुछ लोगों के मरने की खबर आ रही है। एक दूसरे चैनल ने भी वही ब्रेकिंग न्यूज दी कि इलाबाहाबाद स्टेशन पर भगदड़ में कई कुंभ यात्री मारे गए हैं यानी शुरूआती दोनों ब्रेकिंग न्यूज से शंका पैदा हो गई कि भगदड़ कुंभ मेले में मची या इलाहाबाद स्टेशन पर। करीब दस मिनट बाद जाकर पहले वाले चैनल ने सही राह पकड़ी और बताया कि भगदड़ स्टेशन पर मची है, न कि कुंभ मेले में अर्थात ‘सबसे तेज’ के चक्कर में तथ्य के साथ जिस तरह से खिलवाड़ किया गया, वह उचित नहीं कहा जा सकता। दोनों घटनाक्रम बड़े थे, लेकिन उन्हें लेकर जो जल्दबाजी दिखाई गई, वह साबित करती है कि मीडिया के कामकाज के स्तर में कहीं न कहीं गिरावट आती जा रही है। महज चंद पलों की देरी से कोई पहाड़ नहीं टूट जाएगा या उस चैनल की विश्वसनीयता पर कोई बड़ी आंच नहीं आएगी, लेकिन इलेक्ट्रोनिक मीडिया यह क्यों नही समझ पाता कि जल्दबाजी में तथ्यों से खिलवाड़ उसकी विश्वसनीयता को जरूर कम कर सकता है। इससे जुड़े लोगों को इस पर गौर करना चाहिए और बेवजह की दौड़ से बचना चाहिए।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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