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Old 24-02-2013, 01:20 AM   #130
Dark Saint Alaick
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Default Re: कुतुबनुमा

सार्थकता तो सिद्ध करनी ही होगी

कहा तो यही जाता है कि मीडिया सच को सामने लाने का सबसे बड़ा माध्यम है, लेकिन कई बार ऐसा लगता है कि मीडिया कुछ बड़ी घटनाओं तक या तो पहुंच नहीं पाता या किसी वजह से उसे नजरअंदाज कर देता है, जबकि कई बार ऐसा लगता है कि प्रायोजित घटनाएं खबर बन कर सामने आ जाती हैं। हाल ही में एक ऐसी जानकारी सामने आई जो दिल दहलाने वाली तो थी ही, परम्परा के नाम पर लोगों में भ्रम भी पैदा करती है, लेकिन न जाने क्यों मीडिया ने इस खबर को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया। गुजरात में कुछ दिनों पहले चालीस आदिवासियों को खौलते तेल में हाथ डालकर अग्निपरीक्षा देने के लिए विवश किया गया और इस दुष्कृत्य की मीडिया ने खबर बनाने के बजाय अनदेखी कर दी, जबकि अग्निपरीक्षा जैसी धूर्त चालों के जरिए लोगों को मूर्ख बनाने वालों के षड़यन्त्र को मीडिया द्वारा प्रमुखता से विश्व के समक्ष उजागर करना चाहिए था। सवाल तो यह भी उठना चाहिए कि जब सती प्रथा जैसी अवैज्ञानिक और अमानवीय कुप्रथा को प्रतिबन्धित करके, इसका महिमामंडन प्रतिबन्धित और अपराध घोषित किया जा चुका है, तो किसी भी प्रकार से अग्निपरीक्षा जैसी अमानवीय और नृशंस क्रूरता की कपोल-कल्पित कहानियों के बूते भ्रम पैदा करने वालो को क्यों रोका नहीं जा रहा है? इनके चलते ही लोगों के अवचेतन मन में ऐसे अमानवीय और क्रूर विचार पनपते हैं। दुर्भाग्य यह है कि मीडिया भी इस पर पुरजोर तरीके से आवाज नहीं उठाता। एक और उदाहरण हाल ही में इलाहाबाद में कुम्भ के दौरान हुए हादसे में कई दर्जन निर्दोष लोगों की जान चली जाने का है। इसमें भी मीडिया एक राय नजर ही नहीं आया। कोई राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहा था, तो कोई रेलवे मंत्रालय को। लेकिन इस तरह के हादसे न हों, इस पर मीडिया की तरफ से कोई सुझाव या कवरेज दिखाई ही नहीं पड़ी। अब तो सभी उसे भूल ही गए हैं। फिर कोई हादसा होगा, तो कुछेक दिन मीडिया उसे भुनाएगा और फिर भूल जाएगा। दरअसल लोकतंत्र में मीडिया वो सशक्त माध्यम होता है, जो हर विषय पर लोगों को जागरुक बनाए। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में तो मीडिया की जिम्मेदारी और भी अहम हो जाती है। इस समय तो बस यह लग रहा है कि मीडिया केवल वहीं अपनी रूचि दिखाता है, जहां से उसको व्यावसायिक हित नजर आता है। शायद यही वजह है कि अब इस क्षेत्र में काम करने वालों में विषय की गंभीरता भी नजर नहीं आती। हाल ही में हैदराबाद में दो धमाकों में कई लोगों ने अपनी जान गंवा दी। शाम सात बजे घटना हुई और इलेक्ट्रोनिक मीडिया टूट पड़ा कवरेज के लिए। तभी एक चैनल पर समाचार प्रस्तुत कर रही एंकर ने घटना की गंभीरता से इतर जाते हुए कहा - ‘अब तक सात लोगों की मौत की खबर है और मरने वालों का स्कोर बढ़ने की संभावना है...।’ गोया कि यह दर्दनाक हादसा नहीं किसी खेल की कमेंट्री चल रही हो। मीडिया से जुड़े लोगों को अब यह गौर करना ही होगा कि खबरों की प्रस्तुति खबर की गंभीरता को लेकर हो । जो खबर है, उस तक पहुंचा जाए और जो प्रायोजित है, उसे छोड़ा जाए, तभी मीडिया की मौजूदगी की सार्थकता सिद्ध होगी।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु

Last edited by Dark Saint Alaick; 24-02-2013 at 01:22 AM.
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