Re: कथा-लघुकथा
हरियल तोता
(कथाकार: जनकराज परीक)
लड़का अपनी हवेली के दरवाजे पर बैठा मौज से जलेबी खा रहा था और भिखारिन- सी दिखने वाली लड़की एकटक उसके दोने पर दृष्टि गड़ाये थी.लड़कीके हाथ मे कपड़े से बना तोता देख कर लड़का सह्सा मचल उठा,‘मै हरियल तोता लूंगा, मै हरियल तोत लूंगा. ’आवाज सुनकर लड़के के पिता आए. पूछ-ताछ करने पर पता चला कि लड़की जलेबी तो लेना चाहतीहैं पर बदले मे अपना तोता नही देना चाहती. कुछ सोच कर लड़के के पिता बोले,‘देखो भाई, जलेबी खाने के लिये तो केवल दांत, मुंह और पेट काफ़ी है लेकिन तोता रखने के लिए भीगी हुई दाल चाहिए, हरी मिर्चें चाहिए. तुम में से जो एक मुट्ठी दाल और पांच सात हरी मिर्चें बाजार से ला सके वह तोता ले ले. जो न ला सके वह जलेबी खा ले.’
‘लेकिन मेरे पास दाल और मिर्च के लिये पैसे नहीं हैं.’ लड़की दीन स्वर मे बोली.
‘पैसे इस के पास भी नहीं है.’ पिता ने लड़के की ओर इशारा करते हुए कहा,‘दोनों उधार लेकर आओ.’
प्रस्ताव पर सहमति प्रकट कर दोनों बाजार की ओर चल दिए । लड़की के आश्चर्य का ठिकाना नही रहा जब उधार के नाम पर उसे तो किसी नेदुकानके चबूतरे पर पाँव भी नहीं रखने दिया और लड़के के लिये गोदाम के दरवाजे खुल गये.
लिहाजा शर्त के अनुसार दोने में बची हुई जलेबी की जूठन के बदले वह अपना हरियल तोता हार कर निरापद भाव से अपने टापरे की ओर चल पड़ी.
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