Re: इधर-उधर से
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मन्नू भंडारी तथा उनकी कहानी पर आधारित फिल्म 'रजनीगंधा' का एक दृष्य
श्री मोहन सिंह सेंगर उस समय “नया समाज” का सम्पादन कर रहे थे और सप्ताह में तीन-चार दिन शाम को बहन जी-जीजा जी के यहाँ आते थे. फिर ये लोग बाहर जा कर शाम साथ ही गुजारते थे. लेकिन जाने कैसा संकोच और दुविधा थी कि इस पर कभी बात करने की हिम्मत ही नहीं हुयी. लेकिन लिखी हुयी कहानी चैन भी नहीं लेने दे रही थी. आखिर सारे संकोच को दूर कर के मैंने उसे “कहानी” पत्रिका में भेज दिया श्यामू सन्यासी के पास. काफी दिनों बाद भैरव प्रसाद गुप्त की प्रशंसा में लिपटी स्वीकृति मिली. पत्रिका में छपी अपनी पहली कहानी को देखना भीतर तक थरथरा देने वाले रोमांचक अनुभव से गुज़रना था. वैसा थ्रिल, वैसा रोमांच तो उसके बाद मैंने कभी महसूस ही नहीं किया, जबकि कहीं बड़े-बड़े और महत्वपूर्ण अवसर आये.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 29-09-2014 at 05:34 PM.
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