उपन्यास: जीना मरना साथ साथ
जिंदगी कभी कभी दोराहे पर लाकर खड़ा कर देती है और अनमना ढंग से चुना गया कोई एक रास्ता जब आगे चल कर बंद मिलता है और वहां से लौटने का उपाय नहीं होता तो फिर इसके लिए किसे देष दें समझ नहीं आता।
हाथ में हथकड़ी और कमर में रस्सा लगा कर अगले दिन कोर्ट ले जाया गया। कोर्ट से फिर जेल। जेल के बड़े से फाटक के पास जब खड़ा हुआ तो दुनिया छोटी लगने लगी। यह भी बदा था। जेल का गेट खुला और मैं अन्दर चला गया। अजीब दुनिया है। सबसे पहले मुझे बार्ड नंबर एक में ले जाया गया, आमद बार्ड। एक चादर जो अपने साथ लाया था उसे कहीं बिछाने की जगह खोजने लगा पर कहीं जगह नहीं मिली। मैं एक कोने में बैठकर सोंचने लगा। मन उदास हो गया। जेल की चाहरदीवारी से बाहर का हौसला टूटने लगा। प्यार के होने का दंभ और यह परिणति?
कई तरह के सवाल मन में उमड़ धुमड़ रहे थे। पहला यही, की पता नहीं अब कितने दिनों तक जेल में रहना पड़े और दूसरा यह कि रीना को उसके परिजन अपने साथ लेकर गए है और वह सुरक्षित है कि नहीं। मेरे केस पर आने वाला खर्च कहां से आएगा? घर में एक भी पैसा नहीं है पर बेटे को कोई जेल में छोड़ तो नहीं देगा? कोई अभिभावक भी नहीं था जो आगे बढ़ कर पैरवी करे। और रीना का हाल जानने का कोई उपाय नहीं था।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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