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Old 12-07-2013, 01:51 PM   #22
VARSHNEY.009
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Default Re: व्यंग्य सतसई

मॉडल छात्र प्रतियोगिता 2007
राजकिशोर








अवसर : सेंट रमण (उच्चारण के अनुसार, सेंट रामन) पब्लिक स्कूल का वार्षिकोत्सव। स्थान : इसी स्कूल का ऑडिटोरियम। विषय : मॉडल छात्र प्रतियोगिता 2007। निर्णायक मंडल के सदस्य : राजेन्द्र यादव, अशोक वाजपेयी, कुलदीप नैयर और कृष्णा सोबती। अध्यक्ष : नामवर सिंह। विद्यार्थी एक-एक कर आते हैं और बताते हैं कि वे क्या बनना चाहते हैं।
स्वप्निल चड्ढा : मेरे आइडियल भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हैं। इस समय उनके जैसी पोजीशन किसी की भी नहीं है। विद्वान के विद्वान और नेता के नेता। ही इज हैविंग द बेस्ट ऑफ बोथ वर्ल्ड्स। पहले मैंने प्रेसिडेंट कलाम के बारे में सोचा था। लेकिन प्रेसिडेंट के पास कोई रियल पॉवर नहीं होता। खाली उपदेश देने में क्या रखा है। मैं तो मनमोहन सिंह का रास्ता अपनाऊँगा। फिर, इस पोस्ट में रिटायरमेंट भी नहीं है।
वर्तिका सिंह : मेरे सामने दो मॉडल हैं। एक मेधा पाटकर का और दूसरा ऐश्वर्या राय का। दोनों ही फोटोजनिक हैं। लेकिन हर लड़की ऐश्वर्या राय नहीं बन सकती। ऑन द अदर हैंड, मेधा पाटकर बनने में मुश्किलें बहुत हैं। गाँव-गाँव, जंगल-जंगल घूमना पड़ेगा। ऑफ कोर्स, आई लव द रूरल सीन, बट, यू नो... इसलिए मैंने अपने लिए एक ऐसा मॉडल चुना है, जिसमें फिफ्टी परसेंट ऐश्वर्या राय हों और फिफ्टी परसेंट मेधा पाटकर। इट विल बी ए ग्रेट मिक्स।
अमिष श्रीवास्तव : मैं बड़ा होकर सलमान रुश्दी बनना चाहता हूँ। राइटिंग इज अ ग्रेट प्रोफेशन दीज डेज। सारी दुनिया घूमते रहो और साल-दो साल में एक नॉवेल लिख दो। मैं भी साल के दस महीने इंडिया से बाहर रहूँगा और सिर्फ दो महीने के लिए यहाँ आऊँगा। मुझे अपना पहला उपन्यास नॉर्थ-ईस्ट पर लिखना है। इसके लिए मैंने अभी से नोट्स लेना शुरू कर दिया है। मेरे पापा पेंगुइन में हैं। ब्रेक मिलने में कोई मुश्किल नहीं होगी।
शकुंतला नायर : टु बी वेरी फ्रैंक, मैं जर्नलिस्ट बनना चाहती हूँ। मैंने डिसाइड कर लिया है कि मुझे टीवी चैनल में नहीं जाना है। मुझे तो पि्रंट पसंद है। लेकिन मैं पॉलिटिक्स कवर करना नहीं चाहती। इट्स सो बोरिंग। मेरी पसंद लाइफस्टाइल जर्नलिज्म है। हाई सोसाइटी में मूव करना और नॉटी प्रोज में पर्सनालिटीज और ओकेजन्स के बारे में लिखना। हाउ थ्रिलिंग। मैंने अभी से फूड, वाइन, फैशन, पार्टीज, नाइटलाइफ वगैरह के बारे में जानकारी जमा करना शुरू कर दिया है।
रवि एन. दारूवाला : मनी इज माई पैशन। मैं लाखों-करोड़ों में खेलना चाहता हूँ। इसलिए मुझे इंडस्ट्रियलिस्ट बनना है। मेरा सपना मल्टी-नेशनल बनने का है - अ स्ट्रांग इंडियन मल्टीनेशनल। टाटा, अंबानी वगैरह ट्रेडीशनल धंधों में लगे हुए हैं। मैं नए एरियाज में ब्रेकथ्रू करना चाहता हूँ। जैसे मेरा एक सपना है, हर शहर में हेलिकॉप्टर सर्विस शुरू करना। अगले कुछ वर्षों में सड़कों पर कंजेशन इतना बढ़ जाएगा कि लोग वक्त पर ऑफिस नहीं पहुँच पाएँगे और ऑफिस पहुँच गए, तो घर नहीं लौट पाएँगे। प्वाइंट टु प्वाइंट हेलिकॉप्टर सर्विस से सभी को रिलीफ मिलेगी। इसके साथ मैं अस्पतालों, होटलों और सिनेमा हॉल्स को भी जोड़ूँगा। ऐसे दर्जनों आइडियाज मेरे पास हैं।
अभिषेक वैदिक : आई एम अ बॉर्न लेफ्टिस्ट। मैं बड़ा होकर लेफ्ट का सबसे बड़ा सिगनेचर बनना चाहता हूँ। हमारे यहाँ के वामपंथी पिछड़े हुए हैं। वे मार्क्स की मारकेटिंग करना नहीं जानते, जबकि दुनिया भर में मार्क्सिज्म इक्कीसवीं सदी में प्रवेश कर गया है। मेरे खयाल से मार्क्सवाद की सबसे ज्यादा जरूरत मिडिल क्लास को है। मिडिल क्लास ही समाज को लीडरशिप देता है। पर हमारे यहाँ के मिडिल क्लास में कोई दम नहीं है। उसकी एम्बीशन्स बेहद लिमिटेड हैं। मैं उसके सारे बैरियर्स तोड़ दूँगा। दरअसल, हमें लेफ्ट की नहीं, न्यू लेफ्ट की जरूरत है। सीपीएम का लीडरशिप न तो लेफ्ट है और न न्यू लेफ्ट। इसीलिए वह आगे नहीं बढ़ पा रहा है। पॉलिटिक्स में नए खून की जरूरत है। अमेरिकन न्यू लेफ्ट के इंटेलेक्चुअल्स से मैंने अभी से करेसपांडेंस करना शुरू कर दिया है। चाइना के कई लेफ्ट ब्लॉगिस्ट्स मेरे गहरे साइबर-फ्रेंड हैं।
प्रतियोगियों द्वारा अपना-अपना पक्ष रखने के बाद निर्णायक मण्डल अंक तालिका बनाने में लग जाता है। कुछ ही मिनटों में निर्णायकों के बीच विवाद होने लगता है। राजेन्द्र यादव और अशोक वाजपेयी ऊँची आवाज में बोलने लगते हैं। कृष्णा सोबती हैरत से और कुलदीप नैयर उत्सुकता से दोनों को देखते रहते हैं। तभी स्कूल की प्रिंसिपल डॉ. स्वाती कला चोपड़ा मंच पर आती हैं। वे निर्णायकों से निवेदन करती हैं कि वे एक अलग कमरे में बैठक कर अपने मतभेद मिटा लें और नामवर सिंह से अध्यक्षीय भाषण देने के लिए आग्रह करती हैं।
नामवर सिंह : मैं मूलतः साहित्य का आदमी हूँ। प्रेमचन्द ने भले ही कहा हो कि साहित्य राजनीति के आगे चलने वाली मशाल है, पर युग की संवेदना साहित्य में तुरन्त नहीं पहुँच जाती। इसमें समय लगता है। इसीलिए लेखक के लिए आवश्यक होता है कि वह युवा लोगों के बीच उठे-बैठे। इससे उसकी कलम पुनर्नवा हो जाती है। अशोक जी मेरे मित्र हैं। कवि हैं। उन्होंने ध्यान दिया होगा कि नई पीढ़ी में कोई कवि नहीं बनना चाहता। आज की इस प्रतियोगिता में राजेन्द्र जी के लिए भी गहरा सन्देश है। एक ने भी स्त्री या दलित की चर्चा नहीं छेड़ी। और, कुलदीप नैयर भी सँभल जाएँ। आज की पत्रकारिता अपना अलग रास्ता तलाश रही है। नई कहानी की तर्ज पर मैं कहना चाहूँगा कि यह नई पत्रकारिता है। दरअसल, यह पूरा समय ही नया है। किसी को चाहिए कि शोध कर 'नए युग के प्रतिमान' जैसी चीज लिखे। मुझे एक और सभा की अध्यक्षता करने के लिए जाना है। इसलिए मैं और ज्यादा कहना नहीं चाहता। धन्यवाद।
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