Re: साक्षात्कार
हाँ, अभिषेक, यह बात सच है।
अचरज की कोई बात नहीं. जब भी कोई नई चीज़ उपलब्ध होती है, तो थोडी देर के लिए पुरानी चीज़ों से हमारा ध्यान हट जाता है। मैं पिछले १३ साल से कई यहू ग्रूपों में सदस्य रहा हूँ, और बहुत ही सक्रिय सदस्य था। पर आजकल, उन ग्रूपों में १ या २ प्रतिशत के सदस्यों को छोडकर, बाकी सब lurkers बन गए हैं। पता नहीं वे पोस्टों को पढ भी रहे हैं या नहीं।
फोरम और ब्लॉगों में भी यही हाल है। आजकल ब्लॉग लिखने वाले ज्यादा और उनको पढने वाले कम हो गए हैं। मैंने भी ब्लॉग्गर बनने की कोशिश की पर देखा कि दूसरों के ब्लॉगों पर मेरी टिप्पणियाँ ज्यादा पढी जाती हैं! ब्लॉग्गरों के गुट बन गए हैं और वे एक दूसरे के ब्लॉग पढने मे लगे हैं (by an unpsoken mutual agreement) और एक लाईन की टिप्पणी लिखकर अपना attendance mark कर देते हैं। जब कोई नया ब्लॉग्गर प्रवेश करता है, तो उसे पाठकों की कमी महसूस होती है और आज कल कई ब्लॉग्गर अनेक और अजीब तरीके अपना रहे हैं पाठकों को आकर्षित करने के लिए।
एक और कारण है, कि २००० से लेकर २००५ तक, इंटरनेट हम सबके लिए एक novelty थी, पर आजकल इंटर्नेट आम बन गया है। लोग जलदी बोर हो जाते हैं और नए नए अनुभवों को तलाशते रहते हैं। स्प्ष्टटत: फोरम, याहू/गूगल ग्रूप और ब्लॉग्गरी, Facebook/Twitter से पीछे रह गए हैं लेकिन मेरा अनुमान है कि लोग Facebook से भी ऊबने लगे हैं। कई लोगों ने अपना Facebook account बन्द भी कर दिए। कहते हैं बहुत समय बर्बाद होता है। Friends और likes की गिनती में अपने मन की शान्ति भी खो बैठते हैं। मैंने तो Facebook पे अपना account खोला था पर एक सप्ताह में ही समझ गया कि यह मंच मेरे लिए नहीं है। It is too distracting and intrusive. मैं forum और याहू ग्रूपों में अब भी विश्वास रखता हूँ, अच्छे ब्लॉग पढता हूँ, लेखों पर टिप्पणी करता हूँ और youtube/google/wikipedia और अनेक अच्छे news sites/portals पर अपना समय बिताता हूँ।
और हाँ, कभी कभी, कुछ दिनों के लिए, इंटर्नेट से दूर रहता हूँ और मेरे पुराने शौक को याद करता हूँ और किताब/पत्रिकाएं पढने लगता हूँ, या गाने सुनता हूँ, लोगों से मिलता हूँ, सिनेमा देखता हूँ या बस कहीं दूर टहलने जाता हूँ। There was life before the internet, and there is life even now beyond the internet.
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