वरना जोगन बन डोलूँगी
जी भर बरसे मेघा फ़िर भी, पपिहन “प्यासी हूँ” बोले,
शब्द प्यास के फ़िर वह रह रह सबके कानों में घोले ।
लगता है कुछ शेष रह गयी अन्तर्मन की टीस सखे !
जी भर नाचा खूब मयूरा, फ़िर अधीर है पर खोले,
हरियाली का ताज सजा था कल बारिश की रिमझिम में,
कुम्हिलाने फ़िर लगी धरा है, शनै: शनै: हौले हौले ।
घर आँगन जलमग्न हुए थे, झरने भी थे खूब बहे,
पर यह कैसी प्यास सखे ! जो खड़ी ओखली मुँह खोले ।
अब तुम ही बतला दो कैसे, एक स्पर्श से जी लूँ मैं,
तुम मुझसे कहते हो भर लूँ , एक बार में ही झोले ।
मन की पीड़ा समझ सको तो, मिलना बारम्बार सखे !
वरना जोगन बन डोलूँगी, अलख निरंजन बम भोले ।