Re: शास्त्रोक्त संस्कार (आचार संहिता)
सदाचार प्रशंसा-
सदाचारकी रक्षा यत्नपुर्वक करनी चाहिये। धन तो आता है और जाता है।
धन क्षिण हो जाने पर भी सदाचारी मनुष्य क्षिण नही होता॥
आचारहीन मनुष्य संसार मे निन्दित होता है और परलोकमें भी सुख नहीं पात।इसलिये सबको आचारवान होना चाहिये।
समय नुसार कर्तव्य।--
दोनो संध्याओं तथा मध्याह्नके समय शयन, अध्ययन, स्नान, उबटन लगाना, भोजन और यत्रा -इत्यादी चीजे नहि करनी चाहिये।
रात मे दहि नहि खाना चाहिये.
रत्रिको पेड के निचे नहि रहना चाहिये।
आमावस्याके दिन जो व्रुक्ष, लता आदिको काटता है अथवा उनका एक पत्ता भी तोडता है, उसे ब्रह्महत्या का पाप लगता है।
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==========हारना मैने कभी सिखा नही और जीत कभी मेरी हुई नही ।==========
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