Re: प्राचीन सूफ़ी संत और उनका मानव प्रेम
दरगाह के अहाते के उत्तरी छोर पर एक बावली है जिसके पानी को शेख निजामुद्दीन के आबिद पाक मानते हैं। कहा जाता है कि इस बावली और तुगलकाबाद किले को एक समय में ही बनाया जा रहा था। सुलतान गियासुद्दीन तुगलक ने अपने मजदूरों को हुक्म दिया कि वे बावली की खुदाई करने नहीं जाएं। मजदूरों ने बावली खोदने का काम रात में शुरू कर दिया तो उन्हें रोशनी करने के लिए तेल देने पर पाबंदी लगा दी गई। कहते हैं कि शेख निजामुद्दीन ने तब तेल के बजाय इस बावली के पानी से ही चिराग को रोशन कर दिया और उसके उजाले में खुदाई का काम पूरा हुआ।
मिर्जा कोकलताश के वालिद अतगा खान का मकबरा भी दरगाह के नजदीक ही है। अतगा खान की बीवी जीजी अंगा ने अकबर को बचपन में अपना दूध पिलाया था और वह बादशाह के करीबी लोगों में थे। बादशाह अकबर की एक और दाई मां महम अंगा (महामंगा ? - एडीटर) के बेटे आदम खान ने 1562 में अतगा खान की हत्या कर दी। इसके बाद बादशाह अकबर के हुक्म पर आदम खान को आगरे के किले से नीचे फेंक कर मार डाला गया था।
लाल बलुआ पत्थर से बने अतगा खान के मकबरे को मिर्जा कोकलताश ने 1566-67 में बनवाया था। इस मकबरे के मामार उस्ताद खुदा कुली थे और इसकी बाहरी दीवारों में लगी संगमरमर की पट्टियों पर बुखारा के मशहूर कातिब बाकी मोहम्मद ने कुरान की आयतें उकेरी थीं। मकबरे के बाजू में उसी जमाने का एक छोटा सा मदरसा भी बना हुआ है।
देस बिदेस में ढूंढ फिरी हूं
ऐसो रंग और नहीं पायो निजाम
मोहे तोरा रंग मन भायो ...
(आलेख आभार: सुविधा कुमरा)
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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