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rajnish manga
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Default Re: प्राचीन सूफ़ी संत और उनका मानव प्रेम

मौलाना रूमी
बुद्धिमानों का संग

एक तुर्क घोड़े पर सवार चला आ रहा था। उसने देखा कि एक सोते हुए मनुष्य के मुंह में एक सांप घुस गया। सांप को मुंह से निकालने की कोई युक्ति समझा में न आयी तो मुसाफिर सोनेवाले के मुंह घूंसे लगाने लगा। सोनेवाला गहरी नींद से एकदम उछल पड़ा। देखा, एक तुर्क तड़ातड़ घूंसे मारता जा रहा है। वह मार को सहन न कर सका और उठकर भाग खड़ा हुआ। आगे-आगे वह और पीछे-पीछे तुर्क। एक पेड़ के नीचे पहुंचे। वहां बहुत से सेव झड़े हुए पड़े थे। तुर्क कहा, "ऐ भाई! इन सेवों में से जितने खाये जायें, उतने तू खा। कमी मत करना।"

तुर्कं ने उसे ज्यादा सेव खिलाये कि सब खाया-पिया उगल-उगलकर मुंह से निकालने लगा। उसने तुर्कं से चिल्लाकर कहा, "ऐ अमीर! मैंने तेरा क्या बिगाड़ा था तू मेरी जान लेने पर उतारू हो गया? अगर तू मेरे प्राणों का ही गाहक है तो तलवार के एक ही वार से मेरा जीवन समाप्त कर दे। वह भी क्या बुरी घड़ी थी जबकी मैं तुझे दिखाई दिया।"

वह इसी तरह शोर मचाता और बुरा-भला कहता रहा और तुर्कं बराबर मुक्के-पर मुक्का मारता रहा। उस आदमी का सारा बदन दुखने लगा। वह थककर चूर-चूर हो गया। लेकिन वह तुर्कं दिन छिपने तक मार-पीट करता रहा, यहां तक कि पित्त के प्रकोप से उस आदमी का अब बार-बार बमन होनी शुरु हो गयी। सांप वमन के साथ बहार निकल आया।

जब उसेन अपने पेट से सांप को बाहर निकलते देखा तो डर का कारण थर-थर कांपने लगा। शरीर में जो पीड़ा घूंसों की मार से उत्पन्न हो गयी थी, वह तुरन्त जाती रही।

वह आदमी तुर्कं के पैरों पर गिर पड़ा और कहने लगा, "तू तो दया का अवतार है और मेरा परम हितकारी है। मैं तो मर चुका था। तूने ही मुझे नया जीवन दिया है। ऐ मेरे बादशाह, अग तू सच्चा हाल जरा भी मुझे बाता देता साथ ऐसी अशिष्टता क्यों करता है? परन्तु तूने अपनी खामोशी से मुझे हैरान कर दिया, और बिना कारण बताए बदन पर घूंसा मारने लगा। ऐ परोपकारी पुरुष! जो कुछ गलती से मेरे मुंह से निकल गया, उसके लिए मुझे क्षमा करना।"

तुर्कं ने कहा, "अगर मैं इस घटना का जरा भी संकेत कर देता ता उसी समय तेरा पित्त हो जाता और डर के मारे तेरी आधी जान निकल जाती। उस समय न तुझमें

इतने सेव खाने की हिम्मत होती और न उल्टी होने की नौबत आती है। इलिए मैं तो तेरे दुर्वचनों को भी सहन करता रहा। कारण बताना उचित नहीं था और तुझे छोड़ना भी मुनासिब नही था।"

[बुद्धिमानों की शत्रुता भी ऐसी होती है कि उनका दिया हुआ विष भी अमृत हो जाता है। इसके विपरीत मूर्खो की मित्रता से दु:ख और पथ-भ्रष्टता प्राप्त हाती है]
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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