बिजली महादेव
"श्री भगवान शिव के सर्वोत्तम तपस्थान (मथान) 7874 फुट की ऊंचाई पर है। श्री सदा शिव इस स्थान पर तप योग समाधि द्वारा युग-युगान्तरों से विराजमान हैं। सृष्टि में वृष्टि को अंकित करता हुआ यह स्थान बिजली महादेव जालन्धर असुर के वध से सम्बन्धित है। दूसरे नाम से इसे कुलान्त पीठ भी कहा गया है। सात परोली भेखल के अन्दर भोले नाथ दुष्टान्त भावी, मदन कथा से नांढे ग्वाले द्वारा सम्बन्धित है।
यहां हर वर्ष आकाशीय बिजली गिरती है। कभी ध्वजा पर तो कभी शिवलिंग पर बिजली गिरती है। जब पृथ्वी पर भारी संकट आन पडता है तो भगवान शंकर जी जीवों का उद्धार करने के लिये पृथ्वी पर पडे भारी संकट को अपने ऊपर बिजली प्रारूप द्वारा सहन करते हैं। जिस से बिजली महादेव यहां विराजमान हैं।”
ये तो थी वहां लिखी हुई बातें। अब मेरे विचार। ब्यास और पार्वती नदियों की घाटी में संगम पर एक स्थान है, कुल्लू से दस किलोमीटर मण्डी की ओर- भून्तर। यहां पर एक तरफ से ब्यास नदी आती दिखती है और दूसरी तरफ से पार्वती नदी। दोनों की बीच में एक पर्वत है। इसी पर्वत की चोटी पर स्थित है बिजली महादेव। पहले पहल तो मेरा इरादा भून्तर की तरफ से ही जाने का था। लेकिन बाद में कुल्लू की तरफ से चला गया। और हां, भून्तर की तरफ से यहां आने का कोई रास्ता भी नहीं है। केवल एकमात्र रास्ता कुल्लू से ही है।
बिजली महादेव से कुल्लू भी दिखता है और भून्तर भी। दोनों नदियों का शानदार संगम भी दिखता है। दूर तक दोनों नदियां अपनी-अपनी गहरी घाटियों से आती दिखती हैं। दोनों के क्षितिज में बर्फीला हिमालय भी दिखाई देता है। मैं भून्तर की तरफ मुंह करके खडा हूं। दाहिने ब्यास है, बायें पार्वती। मेरी कल की योजना है मणिकर्ण जाने की। मणिकर्ण पार्वती घाटी में भून्तर से करीब 35 किलोमीटर दूर है। जहां तक भी मुझे पार्वती नदी दिखाई देती है, उसके साथ-साथ मणिकर्ण जाती हुई सडक भी दिखती है।
अब मेरा हौसला देखिये। मैं आज तक अचम्भित हूं कि कैसे मैने इतना बडा निर्णय ले लिया, वो भी अकेले। इरादा किया सीधे भून्तर की ओर उतरने का। कोई रास्ता नहीं है। कुछ दूर तक तो मैं उतर गया। एक मैदान में कुछ गायें-भैंसें चर रही थीं। चरवाहे भी पास में ही बैठे थे। मैं उनके पास पहुंच गया। उनसे कुछ बातें हुईं। क्या बातें हुईं? आज नहीं अगली बार बताऊंगा। फोटू नहीं देखने हैं क्या?
जब कुल्लू से बिजली महादेव पहुंचते हैं तो यह नजारा दिखाई देता है।
सर्दियों की पडी बरफ पिघलने पर यहां घास उग आती है जो माहौल को मस्त बना देती है।
अरे, यह क्या? मोटरसाइकिल? मतलब कहीं ना कहीं से मोटरसाइकिल के चढने लायक भी रास्ता है।
यहां गद्दी लोग पशु चराते हैं। क्योंकि घास के बडे-बडे मैदान हैं।
पशुओं के पीने के लिये तालाब (जोहड) भी हैं। देखने में तो झील लग रहे हैं।
एक ही जगह खडे होकर अलग-अलग कोण से कितने भी फोटो खींचो, सभी में नयापन लगता है।
एक बछडा, एक कटडा। या दोनों बछडे? कन्फ्यूजन बरकरार।
सामने पार्वती घाटी है और बायें कहीं मणिकर्ण है।
बिजली महादेव मन्दिर। हर साल सावन में शिवलिंग पर बिजली गिरती है। शिवलिंग टूटकर टुकडे-टुकडे होकर बिखर जाता है। और फिर उसको मक्खन से जोडा जाता है।
मन्दिर के सामने नन्दी है।
यह ध्वजा है। बिजली इसी पर गिरती है। इसके और शिवलिंग के बीच कुछ सम्बन्ध है। असर शिवलिंग पर होता है।
ऊपर से ऐसा दिखता है भून्तर कस्बा। बायें से पार्वती आ रही है और दाहिने से ब्यास। दोनों मिलकर सीधी चली जाती हैं।
भून्तर की तरफ घास के ही ढलान हैं।
इन ढलानों पर ही पशुओं के लिये साल भर की घास पैदा होती रहती है।