Re: ईश्वर के प्रति समर्पण का भाव
लोगों ने कहा, "बहुत खूब। तुम तो बहुत भाग्यशाली हो।"
बहुत ही समभाव से कृतज्ञ होते हुए वृद्ध किसान ने कहा, "निश्चित रूप से यह भी ईश्वरीय कृपा है।"
उसका पुत्र बहुत उत्साहित हुआ। दूसरे ही दिन उसने एक जंगली घोड़े को जाँचने के लिए उसकी सवारी की, किन्तु घोड़े से वो गिर गया और उसका पैर टूट गया।
पड़ोसियों ने अपनी बुद्धिमता दिखाते हुए कहा, "ये घोड़े अच्छे नहीं हैं। वो आपके लिए दुर्भाग्य लाये हैं, आखिरकार आपके पुत्र का पाँव टूट गया।"
किसान ने उत्तर दिया, "यह भी उनकी कृपा है।"
कुछ दिनों बाद, राजा के अधिकारीगण गाँव में आवश्यक सैन्य सेवा हेतु युवकों को भर्ती करने के लिए आये। वे गाँव के सारे नवयुवकों को ले गए लेकिन टूटे पैर के कारण किसान के पुत्र को छोड़ दिया।
कुढ़न और स्नेह से गांववालों ने किसान को बधाई दी कि उसका पुत्र जाने से बच गया।
किसान ने कहा, "निश्चित रूप से यह भी उनकी ही कृपा है।"
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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