Re: इसलिए शायरी करने की हिमाक़त की है ...
[QUOTE=Dr. Rakesh Srivastava;182864]इस तरह तुमने मेरे साथ मोहब्बत की है ;
जैसे पिछले जनम की कोई अदावत की है .
रूह तक ज़ख्म दिये , चाक़ गिरेबां बख्शा ;
एक उल्फ़त ने तेरी कितनी इनायत की है .
जितना तोड़ोगे दिल को , अक्स अपने पाओगे ;
जानेजां मैंने भी आईने - सी फ़ितरत की है .
तोड़ भी दोगे तो महसूस करोगे ख़ुश्बू ;
मैंने ये सोच के फूलों - सी तबीयत की है .
कैसे परवाना लुभा करके जलाया जाता ;
ऐ शमा तूने मुझे ख़ूब नसीहत की है .
चैन सुख बेच के कुछ ज़ख्म कमाए मैंने ;
एक नादान ने घाटे की तिज़ारत की है .
मेरा जज़्बा था जो पत्थर से ख़ुदा बन बैठे ;
मान एहसान मेरा , मैंने इबादत की है .
तेरे ख़िलाफ़ ज़ेहन जब भी मेरा जाता है ;
दिले नादान ने तेरी ही हिमायत की है .
मेरे जज़्बात तेरे दिल पे सदा देते रहें ;
इसलिए शायरी करने की हिमाक़त की है .
रचयिता ~~ डॉ .राकेश श्रीवास्तव
shaandaar राकेश जी
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मेरी चित्रशाला : दिल दोस्ती प्यार ....या ... .
तुमने मजबूर किया हम मजबूर हो गये ,...
तुम बेवफा निकले हम मशहूर हो गये ..
एक " तुम " और एक मोहब्बत तेरी,
बस इन दो लफ़्ज़ों में " दुनिया " मेरी..
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