Re: आक्षेप का पटाक्षेप
५. श्रीमद्भागवत, स्कन्द ८, अध्याय १२ में के अनुसार - ''शंकर ने दौड़ कर क्रीड़ा करती हुई मोहिनी को जबरदस्ती पकड़ लिया और अपने ह्रदय से लगा लिया।'' आत्मानम---------देव्विनिम्म्र्ता ||३०|| तस्यासौ--------निनिर्जित: ||३१|| तस्यानुधावती--------धावत: ||३२|| अर्थात्- हे महाराजा! तदन्तर देवों में श्रेठ शंकर के दोनों बाहुओं के बीच से अपने को छुड़ाकर वह नारायणनिर्मिता विपुक्ष नितम्बिनी माया (मोहिनी) भाग चली। ||३१|| पीछा करते-करे ऋतुमती हथिनी के अनुगामी हाथी की तरह अमोधवीर्य महादेव का वीर्य स्खलित होने लगा। ||31||
क्या उपरोक्त अनुच्छेद शंकर के कामुक स्वरूप को चित्रित नहीं करता?
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