आम ईन्सान को आय जितनी ज़रुरी है, उतनी ही
बचत की भी ज़रुरत है। लेकिन धीरे धीरे
विज्ञापनों के द्वारा पैसों को खर्च करना सीखाया गया । समांतरीत रुप से आम ईन्सान की महेनत/करकसर की
बचत को भी निशाना बना कर उसे अपने निवेशों की तरफ मोड़ दिया।
मतलब की रुपये पैसे की महत्ता बढा दी गई और जीवन के कई महत्वपुर्ण क्षण और समय ले लिए गए। अब सब के उपर
भविष्य के डर का एक अनदेखा पींजरा है, बेड़ीयां है जिनसे निकल कर वह जीवन का मुल रस का पान भी नहीं कर सकता।