View Single Post
Old 19-11-2011, 01:21 PM   #16
sam_shp
Senior Member
 
sam_shp's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Posts: 516
Rep Power: 16
sam_shp is a jewel in the roughsam_shp is a jewel in the roughsam_shp is a jewel in the rough
Default Re: जानिए हिन्दू धर्म को

हिंदू संस्कृति का आध्यात्मिक आधार
(१)


हिंदू संस्कृति मनुष्य मात्र को क्या, संसार के प्राणी मात्र और अखिल ब्रह्माण्ड तक को भगवान् का विराट् रूप मानता है । भगवान् इस विराट में आत्म-रूप होकर प्रतिष्ठत है और विश्व के समस्त जीव-जन्तु प्राणी स्थावर जंगम उसमें स्थिर हैं । वे अंग हैं और ये सब अङ्गक । जीवन के अन्त तक सब में यह भावना समाविष्ट रहे, एक मित्रा इसी के लिए योग्यता, बुद्धि, सार्मथ्य के अनुसार अनेक र्कत्तव्य निश्चित हैं । र्कत्तव्यों में विभिन्नता होते हुए भी प्रेरणा में समता है, एक निष्ठा है, एक उद्देश्य है और यह उद्देश्य ''अध्यात्म'' कहलाता है । यह अध्यात्म लादा नहीं गया है, थोपा नहीं गया है, बल्कि प्राकृतिक होने कारण स्वाभाविक है ।

विराट के दो भाग हैं- एक है अन्ततः चैतन्य और दूसरा है बाह्य अंग, बाह्य अंग के समस्त अवयव अपनी-अपनी कार्य दृष्टि से स्वतंत्र सत्ता रखते हैं र्कत्तव्य भी उनकी उपयोगिता की दृष्टि से प्रत्येक के भिन्न-भिन्न है, लेकिन ये सब हैं उस विराट अंग की रक्षा के लिए, उस अन्तः चैतन्य को बनाये रखने के लिए इस प्रकार अलग होकर और अलग कर्मों में प्रवृत्त होते हुए भी जिस एक चैतन्य के लिए उनकी गति हो रही है, वही हिन्दू संस्कृति का मूलाधार है । गति की यह एकता, समसत्ता विनष्ट न हो इसी के लिए संस्कृति के साथ धर्म जोड़ा गया है और यह योग ऐसा हुआ है जिसे पृथक् नहीं किया जा सकता । यहाँ तक कि दोनों समानार्थक से दिखाई पड़ते हैं ।

''धर्म'' शब्द की व्युत्पत्ति से ही विराट की एकतानता का भाव स्पष्ट हो जाता है । जो वास्तविकता है, उसी को धारण रखना धर्म है, वास्तविक है, चैतन्य है । यह नित्य है । अविनश्वर है, शाश्वत् है । सभी धर्मों में आत्मा के नित्यत्व को, शाश्वतपन को स्वीकार किया गया है, लेकिन अंगांगों में पृथक् दिखाई देते रहने पर भी जो उसमें एकत्व है, उसके सुरक्षित रखने की ओर ध्यान न देने से विविध सम्प्रदायों की सृष्टि हो पड़ी है । हिन्दू धर्म में इए एकता को बनाये रखने, जागृत रखने की प्रवृत्ति अभी तक कायम है । यही कारण है कि संसार में नाना सम्प्रदायों-मजहबों की सृष्टि हुई, लेकिन आज उनका नाम ही शेष है, पर हिन्दू धर्म अपनी विशालता के साथ जीवित है । हिन्दू धर्म वास्तव में मानव-धर्म है । मानव की सत्ता जिसके द्वारा कायम रह सकती है और जिससे वह विश्व-चैतन्य के विराट अंग का अंग बना रह सकता है, उसी के लिए इसका आदेश है ।

इसीलिए हिन्दू संस्कृति में इस स्पर्द्धा से बचने के लिए जीवन के आरम्भ काल में प्रत्येक को स्वरूप-ज्ञान करने का आदेश है । चिन्मय सत्ता के साथ-विराट के साथ व्यक्ति को जोड़ने वाली इस कड़ी का नाम ब्रह्मचर्याश्रम है ।
sam_shp is offline   Reply With Quote