Re: घर हो मंदिर या घर में हो एक मंदिर
होतें है....गांव में एसे भी घर मैने देखे है जहां हररोज बच्चे, बडे और बुढे मील कर एक साथ खाना खाते है फिर देर रात तक बतियाते रहेतें है। हंसी, मजाक, मस्ती, ज्ञान की बातें, पुरानी यादें और खास कर के माहिती का आदान-प्रदान भी होता रहेता है। परिवार में ईतना कोम्युनिकेशन मैने जब पहली बार देखा तो सचमुच बहुत अच्छा लगा था।
मुझे लगता की शहर में टीवी की वजह से यह सब बंध हो गया है। एक दुसरे के घर आनाजाना भी बहुत कम हो गया है। उपर से स्मार्ट फोन आ गए है, जो सभी का ध्यान कीसी वर्चुअल दुनिया में लगाए रहता है।
|