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Originally Posted by rajnish manga
प्यार या आत्मसम्मान
अगर असुरक्षा या अकेले रहने का भय है तो एक बार उस भय का सामना कर ही लेना चाहिए !अकेले दुनिया का सामना करने का भय उसका सामना करने के बाद ही समाप्त किया जा सकता है !
अगर गहरा प्रेम इतने अपमान के बाद भी अलग होने से रोक रहा है तो आत्मसम्मान को प्रेम से ऊपर रखना चाहिए !सच्चा प्रेम सम्मान के बिना मुकम्मल हो ही नहीं सकता ! सम्मान स्वयं का भी और अपने साथी का भी !
अगर साथ रहने में अपमान और प्रताड़ना का दुःख है और अलग रहने में अलगाव का दुःख तो मैं दूसरे दुःख को चुनना पसंद करूंगी !चाहे प्रेम कितना भी गहरा और सच्चा हो , मैं आत्मसम्मान को उससे हमेशा ऊपर रखूंगी ! कोई भी मुझे अपमानित करके मेरी जिंदगी में नहीं रह सकता ...कोई भी माने कोई भी !
न जाने कितनी औरतों की कहानी है उस लड़की के कहानी में ... काश औरतें अपने अपमानित करने वाले प्रेमियों और पतियों को अपनी जिंदगी से बाहर करने का साहस पैदा कर पायें !
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आत्म सम्मान हर किसी को प्यारा होता है किन्तु हमाँरे समाज के उसुलों ने कहीं धर्म के नाम पर कही प्रेम के नाम पर तो कहीं एक आशा की किरण के कारन, की आज नहीं तो कल सब ठीक हो जायेगा और इस आशा और विश्वास के आधार पर आज भी कई महिलाएं रोज मर रही हैं रोज का मरना ही कहा जा सकता है इसे क्यूंकि हर समय की मानहानि उलाहना ये सब मौत से कम नहीं किन्तु बिडम्बना ये ही है की स्त्री सिर्फ सहना जानती है सामना बहुत कम महिलाये कर पाती हैंऔर अपने परिवार और बच्चो से अलग होने की बात तो शायद सपने में भी नहीं सोच सकती वो .