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rajnish manga
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Default Re: महाभारत के पात्र: श्री कृष्ण

महाभारत के पात्र: श्री कृष्ण

भगवान् विष्णु के आदेशानुसार वासुदेव श्री कृष्ण को वहां से लेकर चलने लगते है | तभी वासुदेव देखते है की काराग्रह के द्वार स्वयं खुल जाते है और उनके पैरों की बेड़ियाँ भी खुल चुकी थी | वो काराग्रह से बहार ही निकले कीउन्होंने देखा सभी सैनिक नींद में थे | वासुदेव ये सब देखकर आश्चर्यचकित होजाते है |वासुदेव अब श्री कृष्ण को लेकर जाने लगते है| रास्ते में उन्हें यमुना जी को पार करना पढता है | यमुना जी उफान पर थी | मानो ऐसा लग रहा था की यमुना जी श्री कृष्ण के चरणों को स्पर्श करना चाहती थी | फिर भी यमुनाजी उन्हें रास्ता दे रही थी |जब वासुदेव जी के सर तक जल आ गया और यमुना जीने श्री कृष्ण के चरणों को स्पर्श कर लिया | तब धीरे धीरे यमुना का जलस्तर कम होने लगा | और वासुदेव जी कृष्ण को लेकर वृन्दावन पहुँच जाते है | वासुदेव जी ने देखा की यशोदा जी अपनी पुत्री के साथ सोयी हुई थी | उन्होंने कृष्ण को यसोधा के पास लेटा दिया | और स्वयं यसोदा की पुत्री कोगोद में लेकर मथुरा काराग्रह में चले गये |
तभीसभी दुवार बंद हो जाते है | और वासुदेव की बेड़ियाँ भी खुद बंद हो जाती है |अब सैनिक निंद्रा से जाग जाते है | और देखते है की वासुदेव और देवकी नेएक बच्चे को जनम दिया है | तभी सैनिक ये सन्देश राजा कंस को देते है |येसन्देश सुनकर | तभी कंस काराग्रह में आता है वासुदेव और देवकी से उनकाआठवां पुत्र मांगता है | वासुदेव कंस को कन्या दे देते है | कन्या देखकरकंस चौक जाता है | कंस क्रोधित हो जाता है और वासुदेव और देवकी से आठवेपुत्र के विषय में पूछता है | तभी वासुदेव बड़े विनम्रता के साथ कहते है कीहे राजन ! इस बार देवकी ने एक बालक नहीं बल्कि एक कन्या को जनम दिया है |
तबकंस को उनकी बातों पर विश्वास हो गया और वो उस कन्या को उनकी आठवी संतानसमझकर धरती पर जेसे ही पटकने लगता है | वो कन्या वेसे ही कंस के हाथ सेछूटकर आकाश में जाकर उड़ जाती है | और कंस से ऊँचे स्वर में कहती है तूमुझे क्या मरेगा , तुझे मारने वाला तो वृन्दावन में पहुँच चुका है | अबवही तुझे तेरे पापों का दंड देगा | जेसे जेसे कृष्ण बड़े होते है | कंस नेकई बार उन्हें माँरने की कोशिश की लेकिन हर बार असफल रहा | अंत में श्रीकृष्ण मथुरा आये और कृष्ण ने कंस का वध कर डाला |
आज भी लोग इस दिन को बड़े धूम धाम से व्रत रखकर कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाते है |
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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