Re: इधर-उधर से
क्षमायाचना का पर्व क्षमावाणी
सन 1974 से 1980 के बीच मैं राजस्थान के चूरू (churu) नगर में रहा करता था. अपने 6 वर्ष के प्रवास के दौरान मैं चार मकानों में बतौर किरायेदार रहा. इत्तफ़ाक ऐसा रहा कि ये सारे के सारे मकान मालिक जैन परिवार थे. इनमे से दो परिवार मूलतः चूरू के थे लेकिन काफी समय पूर्व व्यापार के सिलसिले में कलकत्ता चले गए थे और वहीँ रहते थे. वहाँ से केवल विशेष मौकों पर ही चूरू आया करते थे. हाँ उनकी चिट्ठियाँ बराबर आती रहती थीं, मैं भी उन्हें लिखता रहता था. उन दिनों टेलीफोन का प्रयोग सामान्य रूप से नहीं होता था.
ये दोनों महानुभाव मुझसे बहुत प्यार रखते थे. निरंतर पत्राचार के बीच साल में एक बार पर्युषण पर्व के दौरान क्षमा पर्व पर उनका पत्र (आम तौर पर पोस्टकार्ड) अवश्य आता था. इस पत्र में वे लिखते थे कि यदि उनसे जाने या अनजाने मेरे प्रति कोई गलती हो गई हो तो मैं उन्हें क्षमा कर दूँ. तो यह था उन बुज़ुर्ग लोगों का प्यार तथा अपने अहंकार को हटाने का एक तरीका. यह उन लोगों का बहुत बड़प्पन था. मैं तो उनसे बहुत छोटा था उमर में भी और अनुभव में भी. मुझे आज भी उनकी बहुत याद आती है.
>>>
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 30-08-2016 at 11:17 PM.
|