Re: मेरी रचनाएँ -7 - दीपक खत्री 'रौनक'
आ के जिन्दगी बैठ साथ कुछ गुफ्तगू करे
कर ले आगाज़ अब कुछ नया रूबरू करे
गुजर जाने दे अब वक़्त को मत आवाज दे
तामील हो खाब तेरे क्यों तू आरज़ू करे
मिल जा मुझे तू याके हो फना जिंदगी
ता-जिंदगी ये दिल न कोई आरजू करे
आये ऐसा कोई इन्कलाब बिगड़े जहान मे
पानी हुआ है खून जो फिर से लहू करे
निभाए नहीं जाते अब किरदार वक़्त के
हो ख़ास कुछ के जीस्त तेरी जुस्तजू करे
तन्हा बहुत किया इस जमाने ने 'रौनक' को
ए तन्हाई चल बैठें तन्हा कहीं गुफ्तगू करे
दीपक खत्री 'रौनक'
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