Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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Originally Posted by swati m
नहीं निगाह मे मंज़िल तो जुस्तजू ही सही.
नहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही.....
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हर कोई अपना था लेकिन कोई भी अपना न था
ज़िन्दगी से इस तरह ... रिश्ता कभी टूटा न था
ख्वाहिशों की भीड़ में निकला तो ये मुश्किल हुई
पास था मेरे सभी कुछ ... इक मेरा चेहरा न था
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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