Re: दुश्यन्त कुमार की कविताएँ
वह बचपन के दिन क्यों ढूँढता है दिल
वह पुरानी यादें क्यों ताज़ा करता है दिल
वो गर्मी की छुट्टियों में नानी का घर
स्कूल का आखरी दिन, वो ट्रेन का सफर
वो पतली सी गली में आखरी आलीशान मकान
वो गरम गरम समोसे , वो हलवाई की दूकान
घर में मामा , मौसी और बहन भाईयों की चहल पहल
छुपन छुपैयाँ , पिट्हू , बस दिन भर खूब खेल
दीवार फर्लांग के मैदान में खेलें पकड़म पकड़ी
भाई मिल के खेलें क्रिकेट, बहनें खेलें लंगडी
खेलते हुए कभी हो गई खूब जम के लड़ाई
फिर कुछ रोना रुलाना , बाद में भाई भाई
रात में छत पर अन्ताक्षरी , होता गाना बजाना
वही बिस्तर लगाकर ठंडी हवा में तारे गिनना
वह बचपन के दिन क्यों ढूँढता है दिल
वह पुरानी यादें क्यों ताज़ा करता है दिल
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