Re: मुहम्मद रफी : बहू की नजरों में
अब्बा से बिलकुल उलट थीं अम्मा
मैं बहुत हैरान होती कि अम्मा को न तो किसी किस्म के संगीत में दिलचस्पी थी और न ही वे कभी गाने सुनती थीं। मुझे उन्होंने कई बार टोका और कहा, क्या तुम बगैर गाने सुने जिंदा रह सकती हो! मैं कहती, बिल्कुल नहीं। जिस मुहम्मद रफी के गानों की दुनिया दीवानी थी, मेरे खयाल से अम्मा के लिए वह ‘घर की मुर्गी दाल बराबर’ वाली बात थी। मेरे मन में एक बात थी, जो मैं कई दिनों से अब्बा से कहना चाहती थी, लेकिन समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे कहूं! एक दिन मुझे खालिद की मौजूदगी में मौका मिला और मैंने हिम्मत करके कह दिया, अब्बा मैं कई सालों से बिनाका गीतमाला सुन रही हूं। एक-दो साल से प्रोग्राम में आपके गाने कम होते जा रहे हैं। अब्बा और खालिद दोनों हंसने लगे। फिर खालिद बोले, अब्बा, एक कहावत है, व्हैन द कैट इज अवे, द माइस विल प्ले। डॉली ने कितना सही नमूना पेश किया है। वैसे ये बात सही है, आप भारत से बहुत वक्त बाहर रहने लगे हैं। फिलहाल तो ये ठीक नहीं है। हां, जब आप रिटायरमेंट ले लेंगे, तब की बात और है। खामोशी से सारी बातें सुनने के बाद अब्बा बोले, मुझे इस बात की फिक्र नहीं है। गानों की तादाद तो मैं इतनी दे चुका हूं कि मुझे भी याद नहीं। बस मेरे गाए गानों की क्वालिटी खराब न हो। अल्लाह की मुझ पर खास मेहरबानी रही है, बस यही दुआ किया करो कि ये इसी तरह बनी रहे। अचानक बगैर सोचे-समझे मेरे मुंह से निकल गया, अब्बा आपके जैसा तो कभी कोई गा ही नहीं सकता। उन्होंने मेरी तरफ देखकर कहा, अरे ऐसा नहीं कहते। अल्लाह को बड़े बोल बुरे लगते हैं।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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