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चार साल के भीतर आर्कटिक से खत्म हो सकती है बर्फ
लंदन। दुनिया के एक प्रमुख हिम विशेषज्ञ ने आगाह किया है कि आर्कटिक महासागर का बर्फ चार साल के भीतर पूरी तरह से गायब हो जा सकता है। गार्डियन की रिपोर्ट के अनुसार कैंब्रीज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पीटर वैडहैम्स ने कहा है कि जमने और पिघलने वाला समुद्र का हिस्सा जिस तरह अब तक के न्यूनतम पर सिकुड़ गया है, उत्तरी अक्षांश में ‘वैश्विक अनर्थ’ का प्रादुर्भाव होगा। वैडहैम्स ने आर्कटिक महासागर के नीचे से गुजरने वाली पनडुब्ब्यिों से यात्रा कर बर्फ की परतों की मोटाई के आंकड़े जमा किये हैं। उन्होंने 2007 में महासागरीय बर्फ की परत के टूटने की संभावना जताई थी। तब 41.7 लाख वर्ग किलोमीटर का न्यूनतम क्षेत्र था। इस साल अनपेक्षित रूप से 5,00,000 वर्ग किलोमीटर के सिकुड़ने से यह दायरा 35 लाख वर्ग किलोमीटर ही रह गया है। ‘गार्डियन’ के साथ साक्षात्कार में उन्होंने कहा, ‘मैं अनेक साल से (गर्मी के महीनों में सागर में बर्फ के पिघलने को लेकर) पूर्वानुमान लगाता रहा हूं। इसका मुख्य कारण वायुमंडलीय तापमान में इजाफा है। जिस तरह वातावरण गर्म हो रहा है उससे ठंड के मौसम में बर्फ की मात्रा में वृद्धि में भी गिरावट आ रही है और गर्मी में ज्यादा बर्फ पिघल रही है।’ वैडहैम्स का कहना है कि जिस तरह से यह लगातार घटता जा रहा है उससे आर्कटिक में 2015-16 की गर्मियों तक (अगस्त से सितंबर) बर्फ का नामोनिशान मिट जाएगा। उन्होंने कहा कि पहले यह ध्यान में नहीं आ पाया था। लेकिन, इस साल गर्मियों में यह बर्फ की परत तेजी से सिकुड़ी। गर्मियों के अंत में पिघलने की रफ्तार बढ गयी। उन्होंने कहा कि पानी गर्म होने, बर्फ पिघलने और भारी मात्रा में मीथेन गैस का उत्सर्जन जलवायु परिवर्तन में अहम भूमिका निभा रहा है। वैडहैम्स ने वैश्विक तापमान घटाने के लिए तुरंत नये विचारों पर अमल किए जाने का आह्वान किया है। कुछ अन्य तरीकों के साथ ही सूर्य की किरणों को वापस अंतरिक्ष में प्रावर्तित करने, बादलों को ज्यादा सफेद बनाने, समुद्र में कार्बन डाय आक्साइड की मात्रा घटाने के उद्देश्य से उसे अवशोषित करने के लिए खणिजों के उपयोग जैसे प्रयासों की भी शुरूआत की जाए।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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