15-08-2013, 04:00 PM
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Re: छींटे और बौछार
Quote:
Originally Posted by jai_bhardwaj
शायद मेरा पागलपन है, और नहीं तो क्या कह दूँ
मेरे मन का अपनापन है और नहीं तो क्या कह दूँ
समर में हारे होय पराजय, अपनों से हारा है 'जय'
इसे पराजयगान कहूँ या तुम्ही कहो मैं क्या कह दूँ
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जीवन की शतरंज बिछी है, श्वेत -श्याम हैं वर्ग
जीवन के इस महाकाव्य में, अपने छंद औ सर्ग
जीना-मरना, विजय-पराजय, कड़वा-मीठा द्वंद्व
नर्क मिला तो यहीं मिलेगा, यहीं मिलेगा स्वर्ग
अपनापन है पागलपन, पागलपन मय अपनापन
सूफ़ी का पागलपन ही है निशात-स्वर्ग-गुलमर्ग
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