07-10-2018, 08:29 PM
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Re: महाभारत के पात्र: कर्ण
महाभारत के पात्र: कर्ण
जंघा से बहते, तप्त रक्त के स्पर्श से गुरु जी जाग गए। उन्हें मालूम था कि किसी ब्राह्मण में इतनी सहनशीलता नहीं होती। बिना मेरी बात सुने मुझे श्राप दे डाला। फलतः मैं उनसे शापित हुआ। उन्हों ने गुस्से से कहा, उनसे प्राप्त सारी शिक्षा और ब्रह्मास्त्र प्रयोग मैं तभी भूल जाऊंगा, जब मुझे उनकी सबसे ज्यादा आवश्यकता होगी। तब तक मुझे भी नहीं पता था कि वास्तव में मैं कौन हूँ? मुझे अधिरथ और उनकी पत्नी राधा का पुत्र वासुसेना या राधेय जान कर गुरु परशुराम का क्रोध ठंढा हुआ और तब उन्हों ने मुझे अपना धनुष “ विजय’ दिया। साथ में दिया मेरे नाम को अमर होने का आशीर्वाद। पर श्राप तो अपनी जगह था । क्यों गुरु जी ने उनके प्रति मेरी श्रद्धा, सहनशीलता और निष्ठा नहीं देखी?
गुरु द्रोणाचार्य ने हस्तिनापुर में रंगभूमि आयोजित किया । द्रोणाचार्य नें अपनी शिक्षा और शिष्यों की योग्यता प्रदर्शन करने के लिए रंगभूमी प्रतियोगिता आयोजित किया। वहाँ अनेक राजे-महाराजे, सम्पूर्ण राज परिवार आमंत्रित थे। सभी गणमान्य अतिथि और समस्त राज परिवार सामने ऊँचे मंच पर आसीन थे। मैं भी उत्सुकतावश आयोजन में जा पहुंचा। सभी शिष्यगण अपनी योग्यता प्रदर्शन कर रहे थे। सबसे योग्य अर्जुन अपनी धनुर्विध्या से सबको मोहित कर रहा था। गुरुवर ने अर्जुन को सर्वोत्तम धनुर्धर बताया।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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