Quote:
Originally Posted by sombirnaamdev
कल तक थे जो नामी गुंडे
आज वो देश के सरमाये दार हुए !
शांति के पुजारियों पर
हावी आज हथियार हुए !
ना रही कद्र नारी की जरा भी
सब रिश्ते तार तार हुए !
भूखे सोते पुत कमाऊ ( किसान )
वो (नेता ) खाली बैठ्ये मालदार हुए !
माँ बाप की ना रही अहमियत कोई
सब रिश्ते शर्म सार हुए !
दुःख का साथी कोई नही था
सुख के साथी हजार हुए !
नामदेव तू बचेगा कब तक
जब सारे फिजा -ऐ -इश्क में बीमार हुए !
सोमबीर '''नामदेव '''
|
हालाते हाजरा पर आपने एक यथार्थ चित्र पेश किया है, सोमबीर जी. कविता में हर वाक्यांश अपनी टीस का अनुभव कराता है. अंतिम दो पंक्तियों ने स्थिति सम्हाल ली और कथ्य को एक सुन्दर मोड़ पर ला कर छोड़ा. कृपया इस यथार्थ शब्द चित्र के लिए धन्यवाद और बधाई स्वीकार करें.