02-01-2015, 09:43 AM
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Re: खलील जिब्रान और उनकी रचनायें
खलील जिब्रान
बच्चे
तुम्हारे बच्चे तुम्हारे बच्चे नहीं हैं
वह तो जीवन की अपनी आकाँक्षा के बेटे बेटियाँ हैं
वह तुम्हारे द्वारा आते हैं लेकिन तुमसे नहीं
वह तुम्हारे पास रहते हैं लेकिन तुम्हारे नहीं.
तुम उन्हें अपना प्यार दे सकते हो लेकिन अपनी सोच नहीं
क्योंकि उनकी अपनी सोच होती है
तुम उनके शरीरों को घर दे सकते हो, आत्माओं को नहीं
क्योंकि उनकी आत्माएँ आने वाले कल के घरों में रहती हैं
जहाँ तुम नहीं जा सकते, सपनों में भी नहीं.
तुम उनके जैसा बनने की कोशिश कर सकते हो,
पर उन्हें अपने जैसा नहीं बना सकते,
क्योंकि जिन्दगी पीछे नहीं जाती, न ही बीते कल से मिलती है.
तुम वह कमान हो जिससे तुम्हारे बच्चे
जीवित तीरों की तरह छूट कर निकलते हैं
तीर चलाने वाला निशाना साधता है एक असीमित राह पर
और अपनी शक्ति से तुम्हें जहाँ चाहे उधर मोड़ देता है
ताकि उसका तीर तेज़ी से दूर जाये.
स्वयं को उस तीरन्दाज़ की मर्ज़ी पर खुशी से मुड़ने दो,
क्योंकि वह उड़ने वाले तीर से प्यार करता है
और स्थिर कमान को भी चाहता है.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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