Re: पापा की सज़ा
मुझेऔर मां को हर वक्त यह डर सताता रहता था कि पापा कहीं आत्महत्या न कर लें।ममी तो हैं भी पुराने ज़माने की। उन्हें केवल डरना आता है। परेशान तो मैंउस समय भी हो गई थी जब पापा ने मुझे अपने कमरे में बुलाया। उन्होंने कमरेमें बुला कर मुझे बहुत प्यार किया और फिर एक पाँच हजार का चैक मुझे थमादिया, 'डार्लिंग, हैप्पी बर्थडे !' मैं पहले हैरान हुई और फिर परेशान। मेरेजन्मदिन को तो अभी तीन महीने बाकी थे। पापा ने पहले तो कभी भी मुझेजन्मदिन से इतने पहले मेरा तोहफ़ा नहीं दिया। फिर इस वर्ष क्यों।
'पापा, इतनी भी क्या जल्दी है? अभी तो मेरे जन्मदिन में तीन महीने बाकी हैं।'
'देखो बेटी, मुझे नहीं पता मैं तब तक जिऊंगा भी या नहीं। लेकिन इतना तो तू जानती है कि पापा को तेरा जन्मदिन भूलता कभी नहीं।'
मैंपापा को उस गंभीर माहौल में से बाहर लाना चाह रही थी। 'रहने दो पापा, आपतो मेरे जन्मदिन के तीन तीन महीने बाद भी मांगने पर ही मेरा गिफ्ट देतेहैं।' और कहते कहते मेरे नेत्र भी गीले हो गये।
मैं पापा को वहींखड़ा छोड़ अपने घर वापिस आ गई थी। उस रात मैं बहुत रोई थी। मेरे पतिबहुत समझदार हैं। वो मुझे रात भर समझाते रहे। कब सुबह हो गई पता ही नहींचला।
पापा के जीवन को कैसे मैनेज करूं, समझ नहीं आ रहा था। ध्यान हरवक्त फ़ोन की ओर ही लगा रहता था। डर, कि कहीं ममी का फ़ोन न आ जाए और वहरोती हुई कहें कि पापा ने आत्महत्या कर ली है।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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